Fiction
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
AURAT KA KOI DESH NAHIN (PAPER BACK)
तसलीमा नसरीन की यह पुस्तक जिसका अनुवाद सुशील गुप्ता ने किया है विभिन्न अखबारों में लिखे हुए कॉलमों का संग्रह है! यह किताब उन औरतों को समर्पित है,जो अपने कदम,’लोग क्या कहेंगे’ के दर से पीछे नहीं हटातीं। उन लोगों की जो इच्छा होती है,वही करती हैं। वर्तमान युग के नन्हें अंश के टुकड़े –टुकड़े चुन कर लेखिका ने इस पुस्तक में जोडे है यह पुस्तक महिलाओं के भविष्य को जगमगाता हुआ देखने की सुखद चाह का नतीजा है।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
AURAT KE HAQ MEIN
तसलीमा नसरीन का जीवन संघर्षों का एक अनन्त सिलसिला है और उनका साहित्य उन तमाम संघर्षों की एक अन्तहीन दास्तान। अपने लेखन के जरिये उन्होंने संघर्ष, विद्रोह और मुक्ति की पुकार को एकाकार कर दिया है। जीवन में जो कुछ भी वर्जित, घृणित और उपेक्षित है, तसलीमा अपने साहित्य में उन सबको एक उदात्त आयाम देकर प्रस्तुत करती हैं। तसलीमा को पढने के बाद पाठक अपने आप को एक वीभत्स यथार्थ के सामने पाता है और उसका नजरिया बदलने लगता है। तसलीमा फेमिनिज्म के बने-बनाए ढाँचों को तोड़कर हमारे सामने उसका एक अलग पाठ प्रस्तुत करती हैं।
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Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Buddham Sharnam Gachhami
-15%Hindi Books, Literature & Fiction, Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणBuddham Sharnam Gachhami
बुद्धम् शरणम् गच्छामि गौतम बुद्ध के जीवन पर आधारित उपन्यास है। गौतम बुद्ध एक श्रमण थे जिनकी शिक्षाओं पर बौद्ध धर्म की स्थापना हुई। इनका जन्म कपिलवस्तु (वर्तमान नेपाल में) के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। उनके बचपन का नाम सिद्धार्थ था और वे बचपन से ही दयालु थे। 29 वर्ष की आयु में सिद्धार्थ अपने नवजात शिशु राहुल, धर्मपत्नी यशोधरा और राजपाठ का मोह त्यागकर सत्य ज्ञान की खोज में वन की ओर चले गए। वर्षों की कठोर साधना के पश्चात बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध बन गए। भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोककल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को भेजा। जिन्होंने भारत से निकालकर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, श्रीलंका आदि देशों में बौद्ध धर्म को फैलाया और जहाँ बौद्ध धर्म आज भी बहुसंख्यक धर्म है।
राजस्थान साहित्य अकादमी के सर्वोच्च सम्मान ‘मीरा पुरस्कार’ और ‘विशिष्ट साहित्यकार सम्मान’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित राजेन्द्र मोहन भटनागर अपने ऐतिहासिक उपन्यासों के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं। युगपुरुष अंबेडकर, विवेकानन्द, सरदार, दलित संत, गौरांग, कुली बैरिस्टर और शहादत उनकी कुछ लोकप्रिय रचनाएँ हैं।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan
CHHOTE CHHOTE DUKH
मापकाठी आख़िर किसके हाथ में है? औरत की सीमा या सीमाहीनता का फ़ैसला आख़िर कौन करेगा? यह हक़ क्या मर्द को है? यानी मर्द ही क्या समाज का। नियन्ता है? पुरुष-आधिपत्यमय समाज, क़दम-क़दम पर औरत का चरम अपमान करता है। अधिकांश मर्द ही यह समझते हैं कि औरत भोग की वस्तु है। धर्म ने। औरत को मर्द की दासी बनाया है। अपमान का भारी बोझ ढोते-ढोते औरत किसी वक्त आविष्कार करती है। कि उसकी छाती में बूँद- बूँद करके, दुःख और यन्त्रणा का पहाड़ जम गया है। इस पहाड़ को अपनी दोनों बाँहों। से धकियाते-ढकेलते औरत आज क्लान्त और बेजार है। लेकिन किसी की भी ज़िन्दगी की कहानी, यहीं ख़त्म नहीं होती। लेखिका को विश्वास है, वे सपने देखती हैं, औरत आग बन जाए। इस पुरुष-नियंत्रित समाज पर वह जवाबी अघात करे। जो कुछ चरम है, खुद चरमपन्थी बनकर ही, औरत जंग करे। ‘रानी बिटिया’ या ‘रानी-बहू’ बनकर या अनुगृहीत होकर जीने-रहने के दिन अब गुज़र गये। औरत के असहनीय दुःख-यन्त्रणा के कंकड़-पत्थर से ही उसकी मुक्ति और युक्ति की राह तैयार हो। अपनी अन्यान्य किताबों की तरह, तसलीमा नसरीन ने अपनी इस पुस्तक में भी कामना की है- ‘औरत इन्सान है-यही औरत का पहला और आखिरी परिचय हो।’ बंगलादेश में सन् 1994 में यह किताब पहली बार प्रकाशित हुई थी। कॉलम का रचनाकाल है 1992-93 । निर्वासित जीवन की शुरुआत के बाद, लेखिका के और-और कुछेक कॉलम भी बंगलादेश और पश्चिम बंगाल के अख़बारों में प्रकाशित हुए। ‘छोटे-छोटे दुःख’ में उनकी पहले की और परवर्ती विभिन्न समयों में प्रकाशित कुछेक रचनाएँ संगृहीत की गयी हैं।
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Literature & Fiction, Vani Prakashan, उपन्यास
Do Aurton Ke Patra (Paper Back)
“प्रस्तुत कृति में पुरुष शासित समाज में स्त्रियों की दुर्दशा का हू-ब-हू चित्रण है। स्त्री-भोग्या मात्र है और धर्मशास्त्रों में भी उसके पाँवों में बेड़ियाँ डाल रखी हैं। ईश्वर की कल्पना तक में परोक्षतः नारी-पीड़ा का समर्थन किया गया है। सामाजिकत रूढ़ियों के पालन में, और दाम्पात्य जावन के प्रत्येक क्षेत्र में-यानी स्त्रियों के किसी भी मामले में पुरुषों की लालसा, नीचता, आक्रमकता, और निरंकुश भाव को तसलीमा ने खुले आम चुनौती दी है। अपनी दुस्साहसपूर्ण भाषा-शाली और दो टूक अंदाज में अपने विचारों को इस तरह रखा है कि पाठक एक बारगी तो तिलमिला उठता है। पुरुष शासित समाज में स्त्रियों के अधिकार और नारी–मुक्ति को लेकर चाहे जितने बड़े-बड़े दावे पेश किये जाएँ, बांग्लादेश की लेखिका तसलीमा नसरीन का स्वर निस्सन्देह सबसे भास्वर है। उनके लेखन का तेवर सर्वाधिक व्यंग्य मुखर और तिलमिला दोनो वाला है। संस्कार मुक्ति प्रतिवादी और बेबाक तसलीमा ने अपने ‘निर्वाचित कलम’ द्वारा बांग्लादेश में एक जबरदस्त हलचल-सी मचा दी और जैसा कि तय था, विवाद के केन्द्र में आ गयी। इस अप्रतिम रचना को आनन्द पुरस्कार से सम्मानित किये जाने की खबर से सारे देश में एक कृति के प्रति स्वभावतः कौतुहल पैदा हो गया। उक्त रचना के साथ उनके द्वारा इसी विषय पर लिखित उनके अन्य लेखों को भी पस्तुत संस्करण में सम्मिलित कर लिया गया है। इस कृति में तसलीमा ने बचपन से लेकर अब तक की निर्मम, नग्न और निष्ठुर घटनाओं और अनुभवों के आलोक में नये सवाल उठाए गये हैं, जिनसे स्त्रियों के समान अधिकारों को एक सार्थक एवं निर्णायक प्रस्थान प्राप्त हुआ है। “
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Literature & Fiction, Vani Prakashan, उपन्यास
Priya Taslima Nasrin
धार्मिक कट्टरपंथियों के आंदोलन, हत्या की धमकी और सरकारी गिरफ्तारी के आदेश से विवश होकर तसलीमा नसरीन को भूमिगत होने के लिए देश छोड़ना पड़ा। प्रतिक्रियाशील संगठनों के आंदोलनों के साथ-साथ दुनिया के प्रगतिवादी खेमों में एक और आंदोलन का सूत्रपात हुआ। तसलीमा नसरीन के समर्थन में विभिन्न देशों के विभिन्न भाषाओं के लेखकों ने ‘प्रिय तसलीमा नसरीन’ शीर्षक से पत्र-पत्रिकाओं में खुली चिट्ठी लिखना शुरू किया। कट्टरपंथियों के विरोध में लिखी गयी विचारोत्तेजक चिट्ठियों में से चुनी गयी चिट्ठियों का यह संकलन-प्रिय तसलीमा नसरीन !
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