Art & Culture
Showing all 7 results
-
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharat Ke Poorva Kalik Sikke
भारत के पूर्व-कालिक इतिहास-निरूपण के निमित्त सिक्कों का सर्वाधिक महत्त्व है। इन सिक्कों पर अंकित आलेखों के माध्यम से अज्ञात तथ्य प्रकाश में आये और संदिग्ध समझे जाने वाले तथ्यों की पुष्टिï भी हुई। इस प्रकार सिक्कों के माध्यम से प्राप्त जानकारी से इतिहास का प्रामाणिक स्वरूप प्रकाश में आया। भारत में अन्तर्राष्टï्रीय ख्याति के मुद्राशास्त्री डॉ० परमेश्वरीलाल गुप्त ने इस ग्रन्थ में पूर्वकालीन (आरम् भ से 12वीं शती ई०) सिक्कों का समीक्षात्मक अध्ययन प्रस्तुत किया है। सिक्कों के माध्यम से तत्कालीन इतिहास की जानकारी किस प्रकार होती है, इसका विस्तृत विवेचन पुस्तक में किया गया है। इतिहास तथा पूर्व-कालिक सिक्कों के अध्येताओं के लिए यह पुस्तक अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगी। पुस्तक में सिक्कों के अनेक चित्र सम्मिलित किये गए हैं।
SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Bharatiya Rashtravad : Swaroop Aur Vikas
विषय-सूची 1. सम्पादकीय : कृष्णदत्त द्विवेदी / 2. भारतीय राष्ट्रीयता का विकास और भारतीय संविधान : प्रोफेसर आर० के० मिश्र / 3. भारतीय राष्ट्रवाद का स्वरूप : डॉ० पीताम्बर दत्त कौशिक / 4. राष्ट्रवाद : सम् प्रत्ययात्मक विश्लेषण : डॉ० श्यामधर ङ्क्षसह / 5. राष्ट्रवाद की वैचारिकी एवं भारतीय राष्ट्रवाद -समाज ऐतिहासिक विश्लेषण : डॉ० जयकान्त तिवारी / 6. परिवर्तन के परिवेश में राष्ट्रीय चरित्र की समस्या : डॉ० ए० एल० श्रीवास्तव एवं० डॉ० प्रदीप कुमार ङ्क्षसह / 7. शिक्षा राष्ट्रीयता और महामना मालवीय : डॉ० कृष्णदत्त तिवारी / 8. साम्प्रदायिकता – भारतीय राष्ट्रवाद का कटु पक्ष : डॉ० जे० एन० ङ्क्षसह एवं डॉ० आनन्द प्रकाश ङ्क्षसह / 9. भारतीय राष्ट्रवाद : निर्माण प्रक्रिया एवं समस्याएँ -शिवदत्त त्रिपाठी / 10. भारतीय राष्ट्रवाद एवं अस्मिता के संकट की चुनौतिया : डॉ० पी० एन० पाण्डेय / 11. राष्ट्रीय निर्माण और भारतीयकरण-संकल्पना : डॉ० जनार्दन उपाध्याय 12. भारतीय राष्ट्रवाद -अध्ययन दृष्टिकोण और प्रवृत्तियाँ : राधेश्याम त्रिपाठी / 13. सुभाषचन्द्र बोस और उग्र राष्ट्रवाद : डॉ० कौशल किशोर मिश्र / 14. भारतीय राष्ट्रवाद -कुछ विचारणीय तथ्य : डॉ० शिव बहादुर ङ्क्षसह / 15. राष्ट्रमण्डल में नेहरू का भारत : डॉ० शेफाली बनर्जी / 16. भारत में उपराष्ट्रवादी आन्दोलन : डॉ० अरविन्द कुमार जोशी
SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Buddhakaleen Samajik Arthik Jeevan
प्राचीन भारत के इतिहास में महात्मा बुद्ध का उदय सामाजिक तथा धार्मिक परिवर्तन का काल था। पालि, त्रिपिटक बौद्ध धर्म के प्रमुख ग्रन्थ हैं। इन ग्रन्थों में बुद्ध काल के सामाजिक, आॢथक, धाॢमक जीवन का विस्तृत विवरण है। सुत्तपिटक में बुद्ध के प्रवचनों का संग्रह है। इस पुस्तक में सुत्तपिटक के आधार पर तत्कालीन भौगोलिक परिवेश, ग्रामीण तथा नगरीय जीवन, भवन, व्यवसाय-वाणिज्य, कृषि एवं पशुपालन आदि का विस्तृत अध्ययन प्रस्तुत करने का प्रयास किया गया है। बुद्ध के समय बौद्ध धर्म मुख्यत: उत्तर भारत के पूर्वी भाग में प्रचलित था। बुद्ध ने उत्तर भारत के लुंबिनी, बोधगया, सारनाथ, कुशीनगर, राजगीर, (राजगृह), सांकश्य (संकिस्मा), वैशाली, श्रावस्ती आदि स्थानों की यात्राएँ कीं, उपदेश दिए। वे सभी त्रिपिटक में संगृहीत हुए। इन ग्रन्थों में तत्कालीन ग्रामीण और नगरीय जीवन, उनके भवन, उनके निर्माण की कला, उनके निर्माण में लगे लोग, उनके उपकरण, उनके वस्त्र, आभूषण, उनके व्यवसाय, उनके आहार-विहार, बौद्ध भिक्षुओं की दिनचर्या आदि का विस्तृत विवरण है, जिसकी झलक आज भी देखने को मिलती है।
SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Hindu Rajya-Tantra : Complete (Part – 1 & 2)
Vishwavidyalaya Prakashan, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिHindu Rajya-Tantra : Complete (Part – 1 & 2)
समितियों, चरणों और सभाओं के माध्यम से संचालित होने वाली वैदिक युगीन राज्य-तंत्र की व्यवस्था-यात्रा, आधुनिक भारत की संसदीय और पंचायती राज व्यवस्था तक आ पहुँची है। कहना अनुचित न होगा कि यह यात्रा भारतीय परिवेश के नवोन्मेष की यात्रा है। विश्लेषण की दृष्टि से देखें तो वैदिक युग के परवर्ती काल में लोगों की प्रवृत्ति अपने-अपने वर्ग का स्वतन्त्र शासन करने की हो चली थी। यह प्रवृत्ति वर्तमान लोकतांत्रिक राज्य व्यवस्था और आधुनिक राजनीति का विद्रूप भी है। वैसे तो विभिन्न कालखण्डों के इतिहासों को समेटे कितने ही कालजयी आख्यान हिन्दी पाठकों के बीच लोकप्रिय हुए, किन्तु स्व० काशीप्रसाद जायसवाल की 1924 ई० में प्रकाशित इस किताब को विशेष ख्याति मिली। मूल पुस्तक अंग्रेजी में लिखी गयी थी। यह मूल पुस्तक का अनूदित संस्करण है। पुस्तक में लेखक ने अत्यन्त सजीव व नये दृष्टिकोण से वैदिक इतिहास की सांगोपांग झाँकी पाठकों के लिए उपस्थित की है। साम्राज्यों के उत्थान-पतन की गाथाओं से बिल्कुल अलग यह हिन्दू राज्य-तंत्र की राजा रहित शासन प्रणालियों का विस्तृत आ?यान भी है। इस पुस्तक से इस जाति के संगठनात्मक या शासन प्रणाली समबन्धी इतिहास के एक बहुत बड़े अंश की पूर्ति होती है। इस पुस्तक को पढ़कर पता चलता है कि वैदिक ग्रन्थों में वर्णित प्रजातंत्रों का हमारा इतिहास कुछ अधिक प्रयोगधर्मी, कुछ अधिक परिपक्व और कुछ अधिक सफल था। हिन्दू राजनीतिशास्त्र सम्बन्धी साहित्य की रचना का आरम्भ 650 ईसा पूर्व में हो चुका था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र, कामंदकीय नीतिसार तथा मेगास्थनीज के आख्यानों से होते हुए प्रस्तुत पुस्तक की रचना तक की यह यात्रा-कथा हिमालय से लेकर हिन्द महासागर के बीच बसे इस विस्तृत भारतीय भूखण्ड के राज्य-तंत्रात्मक इतिहास की प्राचीन कथा है। इस पुस्तक का प्रथम संस्करण आने के बाद से दुनिया में बहुत-सी उथल-पुथल हुई है, छोटे-बड़े अनेक परिवर्तन हुए हैं और भारत भी इस बीच आजाद हो गया है। किन्तु इतिहास का अन्वेषण करने वाले इस आख्यान की महत्ता कम नहीं हुई है। वैसे तो वैदिक काल के इतिहास पर किसी का भी कुछ भी लिखना चुनौतीपूर्ण कार्य है पर आज की दुनिया और उसके कठिन सवालों को छोड़कर बीते समय की खंगाल और वैदिक इतिहास के पन्नों से आज के समाज को रूबरू कराना लेखक का विशिष्ट पुरुषार्थ भी है। पुराना इतिहास हमें सबक सिखाता है, हिदायतें देता है और आज के अन्धकार पर नयी रोशनी डालता है। कुछ सवाल दिमाग को मथते हैं, दिमाग में बहते ऐसे विचारों को पकड़ कर कागज पर उतारने से उसके नये-नये पहलू निकलते हैं। हमारे वेदों, पुराणों और उपनिषदों में वर्णित राज्यतंत्र की नीतियाँ, बदलते समय के साथ आधुनिक होते समाज ने त्याज्य मान लीं, अन्यथा खारवेल के शिलालेखों में राज्यारोहण को शासक होने के लिए शास्त्रसम्मत विधान नहीं माना गया है। विधिवत राज्याभिषिक्त राजा ही विधिमान्य शासक कहलाता था। इसीलिए विदेशी आक्रान्ताओं को ‘नैव मूद्र्धाभिषिक्तास्ते’ कहकर तिरस्कृत किया गया है।
SKU: n/a -
Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Kashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
-5%Hindi Books, Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिKashi Ka Itihas (Vaidik Kal Se Arvacheen Yug Tak)
काशी उस सभ्यता की सदा से परिपोषक रही है, जिसे हम भारतीय सभ्यता कहते हैं और जिसके बनाने में अनेक मत-मतान्तरों और विचारधाराओं का सहयोग रहा है। यही नहीं, धर्म, शिक्षा और व्यापार से वाराणसी का घना सम्बन्ध होने के कारण इस नगरी का इतिहास केवल राजनीतिक इतिहास न होकर एक ऐसी संस्कृति का इतिहास है जिसमें भारतीयता का पूरा दर्शन होता है। लेखक ने इतिहास और संस्कृति सम्बन्धी बिखरी हुई सामग्री को जोड़कर इस इतिहास का निखरा स्वरूप खड़ा किया है। रोचक सामग्री का भी प्रचुर उपयोग करके नगर के जीवन के विभिन्न पहलुओं पर भी प्रकाश डाला गया है। लेखक की दृष्टि में इतिहास केवल शुष्क घटनाओं का निर्जीव ढाँचा नहीं है, उसमें हम समाज की प्रक्रियाओं तथा धाॢमक अभिव्यक्तियों का भी पूर्णरूप से दर्शन कर सकते हैं। अपने विषय की एकमात्र कृति तो यह है ही। तृतीय संस्करण में काशी के 18वीं-19वीं शताब्दी के अत्यन्त दुर्लभ चित्र सम्मिलित किये गये हैं।
SKU: n/a -
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Prachin Bharat [PB]
Vishwavidyalaya Prakashan, इतिहास, ऐतिहासिक उपन्यास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृतिPrachin Bharat [PB]
प्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविधप्राचीन भारत का इतिहास मानव इतिहास का एक बड़ा लम्बा अध्याय है। भारतीयों ने विस्तृत भूभाग पर सहस्राब्दियों तक जीवन के विविध क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षाप्रद है। गत शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है। तथ्यों की प्रामाणिकता का निर्वाह करते हुए इसका प्रत्येक अध्याय उद्बोधक और व्यञ्जक है। इसमें ऐतिहासिक घटनाओं और व्यक्तियों को ठीक संदर्भ में रखकर उनको चित्रित करने तथा समझाने का प्रयत्न किया गया है। प्राचीन भारत के इतिहास पर कतिपय पुस्तकों के रहते हुए भी यह एक अभिनव प्रयास और इतिहास-लेखन की दिशा में नया चरण है। इसमें राजनीतिक इतिहास के साथ जीवन के सांस्कृतिक पक्षों का समुचित विवेचन किया गया है। मूल पुस्तक में दी गई प्रस्तावना के इस उद्धरण ”नयी सामग्री का उपलब्ध होना, पुरानी सामग्री का नया परीक्षण, इतिहास के सम्बन्ध में नया दृष्टिकोण’ ने नए संस्करण के प्रस्तुतिकरण का अवसर प्रदान किया। १९६० ईस्वी से लेकर आज तक पुरातत्त्व की नई शोधों ने भारतीय प्रागैतिहास पर बहुत प्रकाश डाला है। इनके प्रकाश में ग्रन्थ में प्रागैतिहास के अध्याय का पुन: लेखन किया गया है। साथ-साथ इतिहास के विभिन्न काल-क्रमों की पुरातात्त्विक संस्कृति पर भी प्रकाश डाला गया है। भारतीय इतिहास की कुछ ज्वलंत समस्याओं पर भी नई शोधों के प्रकाश में नया लेखन प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए कनिष्क की तिथि, भगवान् बुद्ध के निर्वाण की तिथि, मेहरौली के ‘चन्द्रÓ की पहचान, गणराज्यों के पुनर्गठन का इतिहास, त्रिराज्यीय संघर्ष आदि। परिशिष्ट में साक्ष्यों पर कुछ विस्तार से चर्चा की गई है। क्षेत्रों में प्रयोग और उससे अनुभव प्राप्त किया। जीवन का ऐसा कोई क्षेत्र नहीं जिसमें उनकी देन न हो। अत: उनका इतिहास मनोरंजक और शिक्षा-प्रद है। गत दो शतियों में इस विषय पर विदेशी और देशी विद्वानों ने लेखनी उठायी है। सबकी विशेषतायें हैं, परन्तु सबकी सीमायें और कुंठायें भी हैं। इससे भारत के प्राचीन इतिहास को समझने में अनेक समस्याओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। डॉ० पाण्डेय ने अपने तीस वर्ष के भारतीय इतिहास, पुरातत्त्व तथा साहित्य के अध्ययन और मनन के आधार पर इस ग्रन्थ का प्रणयन किया है। इसमें प्राचीन भारत के स?बन्ध में सुव्यवस्थित ज्ञान तो मिलेगा ही, साथ ही साथ अधकचरे अध्ययन से उत्पन्न बहुत-सी भ्रान्तियों का निराकरण भी होगा। भारतीय इतिहास की भौगोलिक परिस्थितियों से लेकर प्राचीन काल में उसके उदय, विकास, उत्थान तथा ह्रïास का धारावाहिक वर्णन इसमें हुआ है।
SKU: n/a