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English Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
MAHARANAS: A Thousand Year War for Dharma
-20%English Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)MAHARANAS: A Thousand Year War for Dharma
पंचमक्कारों के नरेशन्स को ध्वस्त करने वाली पुस्तक इस्लामी आक्रमणकारियों के गौरवशाली हिंदू प्रतिरोध पर आधारित है। अपनी कॉपी को आज ही बुक करें और अपने दोस्तों, परिवार और सहकर्मियों को भी ऐसा करने के लिए कहें। और इतिहास निर्माण का हिस्सा बने।
The book that is going to become as sacred as scriptures in each Hindu home. The book that will destroy the lies woven around the glorious Hindu resistance for one thousand uninterrupted years to Islamic invaders of various hues.
The book that will reveal the truth of the greatest Dynasty, not just the greatest Hindu Dynasty, not just the greatest Dynasty of Bharat, but the greatest Dynasty in the world: The Sisodiyas of Mewad. The Avataras who fought invaders non-stop for 1000 years, who endured all hardships, who refused to surrender even when their kingdom was encircled by enemies on all sides, who lived like nomads, but refused to give up. The Dynasty because of which Kesaria still flies on the sacred land of Bharat.
The book questions the whitewash of the deeds and lives of the great Maharanas, especially the greatest of them; Maharana Pratap Singh.
Written by a passionate practicing surgeon who brings the same incisiveness, exactness, and accuracy to the study of the history of this great Dynasty, as his profession.
The book that will arouse in you the sleeping kshatriya, and will remind you that honour and pride do not define the man, they are the man.
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Suggested Books, Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Mahatma Gandhi Aur Unki Mahila Mitr | महात्मा गांधी और उनकी महिला मित्र
Suggested Books, Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMahatma Gandhi Aur Unki Mahila Mitr | महात्मा गांधी और उनकी महिला मित्र
एल्यानोर मॉर्टोन ने सन् 1954 में एक पुस्तक लिखी थी वीमेन बिहाइंड महात्मा गाधी और उसके बाद से इस विषय में कोई पुस्तक नहीं लिखी गयी । तमाम महिलाओं की निकटता गांधीजी के जीवन में एक आकर्षक अध्याय की तरह है खासकर तब जब हम उनके जीवन का अध्ययन ब्रह्मचर्य के दर्शन के साथ करते हैं । यह कृति एक व्यक्ति के पीछे के व्यक्ति और आत्मकथा के भीतर की आत्मकथा की तरह है ।
एक दर्जन से अधिक महिलाए ऐसी थीं, जो एक या अलगअलग समय मे महात्मा गाधी से निकटता के साथ जुडी हुई थीं । कस्तुरबा से संबंधित आख्यान गांधीजी के जीवन के एक अलग अध्याय की तरह है । लेकिन इन महिलाओं मे गांधीजी ने अपनी माता पुतलीबाई और सर्वज्ञ अर्द्धांगिनी कस्तूरबा का प्रतिरूप देखा । उनमें से छह महिलाएं विदेशी मूल की थीं और एक्? अनिवासी भारतीय । मिली ग्राहम पोलक, निला क्रैम कूक और मीरा बहन जैसी कुछ महिलाएँ उस समय की महिलाओं में बुद्धिजीवी कही जा सकती थीं । वे महिलाए महात्मा गाधी के लिए बेटी बहनें और माताएं थीं । हालाकि सरलादेवी चौधरानी अपवाद की तरह थी । गांधीजी उन्हें अपनी आध्यात्मिक पत्नी कहा करते थे ।
ब्रह्मचर्य, गांधी और उनकी सहयोगी महिलाएं बहुत ही आकर्षक विषय है । लेखक ने इस विषय पर आठ वर्ष रवे अधिक तक शोध किया है और उसके बाद इसे पुस्तक के रूप मे कलमबद्ध किया है । नवजीवन ट्रस्ट के सहयोग एरे भारत सरकार के सूचना एव प्रसारण मंत्रालय के प्रकाशन विभाग द्वारा प्रकाशित पुस्तक कॉलेक्टेड वर्क्स इस सम्पूर्ण काल के लिए उनकी बाइबिल की तरह है, जिसे व्यापक तौर पर इसमें उद्धृत किया गया है ।
गांधीजी के बारे में पढना कभी भी उबाऊ नहीं रहा । वह हमेशा से ही अपूर्वानुमेय अपरम्परागत नवप्रवर्तनशील, दयालु और निष्कपट रहे । चेहरे पर भ्रान्तिकारी मुस्कान मौजूद होने के बावजूद वह शरारती थे । अपने सम्पूर्ण जीवन काल मे उन्हे अपने विचारों का कडू। प्रतिरोध सहना पड़ा था । उनका प्रतिरोध करने वालो मे से ज्यादा उनके करीबी दरबारी ही थे । गांधीजी ने एक्? बार श्रीमती पोलक को कहा था कि उनका (श्रीमती पोलक का) जन्म उनके एवं उनरने जुडी महिला सहयोगिनो के अनुप्रयोग के लिए ही हुआ है । गांधीजी अपनी ही पीड़ा से आंतरिक शांति हासिल करते रहे थे ।
रोमा रौलां ने उन्हें दूसरे ईसा मसीह की संज्ञा दी थी । ठीक ईसा मसीह की तरह ही गाँधीजी की सहनशीलता भी पीडा. मौत और मृतोत्थान का प्रतीक बन गयी । यह पुस्तक गाँधीजी के नजरिये से स्त्रीत्व के तमाम पहलुओ को प्रदर्शित करती है । गांधीजी वैसे इक्कादुक्का लोगों में शुमार है, जिन्होंने खुद को स्वनिर्मित हिजड़ा कहकर सेक्स की विभाजन रेखा समाप्त करने का दुस्साहस किया था ।
गाँधीजी महिलाओं की संगत में हमेशा राहत महसूस करते थे । सभी महिला सहयोगिनी ने उन्हें समान महत्त्व दिया । ब्रह्मचर्य महात्मा गाँधीजी और उनकी महिला मित्र पांच दशक तक गांधीजी और उन महिलाओं के बीच संवाद का विश्वसनीय दस्तावेज है, जो भारतीय सौंदर्य परम्परा में वर्णित सम्पूर्ण रसों से सराबोर थीं ।
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Bloomsbury, English Books, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Mahayogi Ashutosh Maharaj – The Master and the Mystic
Bloomsbury, English Books, Religious & Spiritual Literature, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणMahayogi Ashutosh Maharaj – The Master and the Mystic
This book is about Shri Ashutosh Maharaj Ji, whose disciples have a firm conviction that he is established in the highest state of Samadhi since 28th January, 2014.
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Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन
Main Aryaputra Hoon (PB)
Prabhat Prakashan, Suggested Books, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, सनातन हिंदू जीवन और दर्शनMain Aryaputra Hoon (PB)
‘‘हे आर्य! कोई बाहरी आक्रमणकारी जब किसी अन्य देश में प्रवेश करता है तो बाहर से भीतर आता है या भीतर से बाहर जाता है?’’
‘‘यह कैसा प्रश्न हुआ, आर्या! स्वाभाविक रूप से बाहर से भीतर
आता है।’’
‘‘और इसी स्वाभाविक तर्क के आधार पर ही मैं भी एक प्रश्न पूछना चाहूँगी। अगर यह मान लिया जाए कि हम आर्य बाहर से आए थे तो पश्चिम दिशा से प्रवेश करने पर सर्वप्रथम सिंधु के तट पर बसना चाहिए था और फिर पूरब दिशा की ओर बढ़ना चाहिए था। लेकिन वेद और पुरातत्त्व के प्रमाण कहते हैं कि हम आर्य पहले सरस्वती के तट पर बसे थे, फिर सिंधु की ओर बढ़े। यही नहीं, सरस्वती काल से भी पहले हम आर्यों का इतिहास विश्व की प्राचीनतम नगरी शिव की काशी और मनु की अयोध्या से संबंधित रहा है। और ये दोनों नगर भारत भूखंड के भीतर सरस्वती नदी की पूरब दिशा में हैं अर्थात् हम आर्य पूरब से पश्चिम दिशा की ओर बढ़े थे।…तो फिर ये कैसे बाहरी (?) आर्य थे जो भीतर से बाहर (!!) की ओर बढ़े थे।…झूठ के पाँव नहीं होते हैं आर्य, ये झूठे इतिहासकार आपके प्रामाणिक प्रश्नों के उत्तर क्या ही देंगे, जब ये मेरे इस सरल तर्क और सामान्य तथ्य पर बात नहीं कर सकते।’’
‘‘असाधारण तर्क आर्या!’’SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, रामायण/रामकथा
Main Ramvanshi Hoon (PB)
-20%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, अध्यात्म की अन्य पुस्तकें, रामायण/रामकथाMain Ramvanshi Hoon (PB)
“रामायण इतिहास है। त्रेतायुग की ऐतिहासिक कथा। वस्तुत: इतिहास कथा ही तो है। अत: हमारे विद्वान पूर्वजों ने इतिहास-लेखन कथात्मक शैली में किया । रामायण इसका आदर्श उदाहरण है। यह श्रीराम का मार्ग है। यह प्रभु श्रीराम के चरित्र-चित्रण और जीवन-चरित्र की कथा है। श्रीराम युगपुरुष हैं, अवतार-पुरुष हैं, संस्कार-पुरुष हैं, आदर्श-पुरुष हैं, धर्म की प्रतिमूर्ति हैं, आर्यश्रेष्ठ हैं, नरश्रेष्ठ हैं, यह उन्हीं पुरुषोत्तम की जीवन-कथा है। यह विश्व के महानतम योद्धाओं में श्रेष्ठ धनुर्धर श्रीराम की शौर्यगाथा है । यह युगनिर्माण की कथा है।
वर्तमान काल में श्रीराम अधिक प्रासंगिक हैं। अत: आज के गुरुकुल संस्कारवान आर्यों के निर्माण की प्रयोगशाला होने चाहिए, जहाँ रामकथा का प्रत्येक श्लोक छात्र के जीवन-यज्ञ का मंत्र बने। तभी हम उन्नत राष्ट्र का निर्माण कर पाएँगे। शस्त्र और शास्त्र के अलौकिक संगम से निर्मित श्रीराम का जीवन-चरित्र आर्यावर्त की गौरव-गाथा का प्रेरणा्रोत है। यह पुरुषोत्तम श्रीराम की मर्यादा की कथा है। इसका पठन-पाठन दानव को मानव और मानव को देवता बना देगा। सनातन परंपरा का पालन करते हुए
आर्यावर्त का इतिहास लिखने के लिए लेखक ने भी कथात्मक शैली का मार्ग चुना । इसी प्रयास का प्रथम प्रतिफल था ‘मैं आर्यपुत्र हूँ । पूर्व में प्रकाशित यह पुस्तक सतयुग की प्रामाणिक कथा है । ‘ मैं रामवंशी हूँ’ इसी की अगली कड़ी है । यह त्रेतायुग की प्रामाणिक कथा है।”
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृति
Manusmriti (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, वेद/उपनिषद/ब्राह्मण/पुराण/स्मृतिManusmriti (PB)
मनुष्य ने जब समाज व राष्ट्र्र के अस्तित्व तथा महत्त्व कौ मान्यता दी, तो उसके कर्तव्यों और अधिकारों की व्याख्या निर्धारित करने तथा नियमों के अतिक्रमण करने पर दण्ड व्यवस्था करने की भी आवश्यकता उत्पन्न हुई । यही कारण है कि विभिन्न युगों में विभिन्न स्मृतियों की रचना हुई, जिनमें मनुस्मृति को विशेष महत्व प्राप्त है । मनुस्मृति में बारह अध्याय तथा दो हज़ार पांच सौ श्लोक हैं, जिनमें सृष्टि की उत्पत्ति, संस्कार, नित्य और नैमित्तिक कर्म, आश्रमधर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित्त आदि अनेक विषयों का उल्लेख है। ब्रिटिश शासकों ने भी मनुस्मृति को ही आधार बनाकर ‘ इण्डियन पेनल कोड ‘ बनाया तथा स्वतन्त्र भारत की विधानसभा ने भी संविधान बनाते समय इसी स्मृति को प्रमुख आधार माना । व्यक्ति के सर्वतोमुखी विकास तथा सामाजिक व्यवस्था को सुनिश्चित रूप देने व व्यक्ति की लौकिक उन्नति और पारलौकिक कल्याण का पथ प्रशस्त करने में मनुस्मृति शाश्वत महत्त्व का एक परम उपयोगी शास्त्र मथ है । वास्तव में मनुस्मृति भारतीय आचार-संहिता का विश्वकोश है, जो भारतीय समाज के लिए अत्यन्त उपयोगी सिद्ध होगा।
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English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)
MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
-11%English Books, Suggested Books, Vitasta Publishing, सनातन हिंदू जीवन और दर्शन, सही आख्यान (True narrative)MENSTRUATION ACROSS CULTURES : THE SABARIMALA CONFUSION – A HISTORICAL PERSPECTIVE
Menstruation across Cultures attempts to provide a detailed review of menstruation notions prevalent in India and in cultures from across the world. The world cultures covered in the book include Indic traditions like Hinduism, Buddhism, Jainism and Sikhism; ancient civilisations like Greece, Rome, Mesopotamia and Egypt; and Abrahamic religions of Judaism, Christianity, and Islam. Two themes of special focus in the book are: Impurity and Sacrality. While they are often understood as being opposed to each other, the book examines how they are treated as two sides of the same coin, when it comes to menstruation. This is especially true in Indic traditions and pre-Christian polytheistic traditions like Greco-Roman, Mesopotamian and Egyptian. Impurity and Sacrality complement each other to form a comprehensive worldview in these cultures. The book also examines how the understanding of impurity in Abrahamic religions differs from those of polytheistic cultures. As part of the examination of the sacrality attached to menstruation, a special focus has also been given to the deities of menstruation in polytheistic cultures and to what Ayurveda and Yoga say about this essential function in a woman’s physiology. Finally, a comparative study of menstrual notions prevalent in modernity is presented, along with a Do and Don’t dossier.
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Mohammed and the rise of Islam
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Mohammed and the rise of Islam
Marligoliouth was a great linguist and scholar and was for a long time a professor of Arabic at the Univ. of Oxford. The spiritual equipage of Islam and Christianity is similar; their spiritual contents, both in quality and quantum, are about the same. The central piece of the two creeds is “one true God” of masculine gender who makes himself known to his believers through an equally single, favoured individual. The whole prophetic spirituality in both is mediumistic in essence. Here everything takes place through a proxy, through an intermediary. The proxy is the favoured individual, a privileged mediator…Hitherto we have looked on Hinduism through the eyes of Islam and Christianity. Let us know learn to look at these ideologies from the vantage point of Hindu spirituality- they are no more than ideologies, lacking as they are in the integrality and inwardness of true religion and spirituality. Such an exercise would also throw light on the self-destructiveness of the modern ideologies of Communism and Imperialism, inheritors of the prophetic mission or “burden”, in its secularized version, of Christianity and Islam. The perspective gained will be great corrective and will add a new liberating dimension; it will help not only India and Hinduism but the whole world.
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Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Mopla Vidroh-1921 (PB)
-10%Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Mopla Vidroh-1921 (PB)
इतिहास लेखन में तथ्यों को उनकी असली तसवीर के साथ प्रस्तुत करना ही इतिहास के साथ न्याय
होता हैै। स्वतंत्र भारत में भारत के विधाताओं ने आपसी सौहार्द की दुहाई देते हुऐ, भारत के इतिहास से
ऐसे प्रसंगों को निकाल दिया, जो रक्तरंजित थे या जिसमें अमानवीयता ने अपनी सारी हदें पार कर दी
थीं। ऐसे ही प्रसंगों में से एक प्रसंग मोपला विद्रोह भी था। इस विद्रोह को एक सामान्य भूस्वामी बनाम
ड्डषि-कर्मी के विवाद के रूप में कह कर उपेक्षित कर दिया गया जो कि इतिहास के साथ धोखा था।
मोपला विद्रोह मोपला उपद्रवियों द्वारा हिंदुओं के ऊपर किये गये अत्याचारों की दास्तान है।
वीभत्सता, संगठित हिंसा और नृशंसता को देखते हुऐ, विद्रोहियों के द्वारा किया गया यह हिंसक ड्डत्य
मालाबार के इतिहास में अभूतपर्व है।
लेखक स्वर्गीय सी. गोपालन नायर ने इस पुस्तक में मूलतः अखबारों में प्रकाशित खबरों तथा कुछ
सरकारी दस्तावेजों का हवाला दिया है, जो उन्हें उपलब्ध हो पाये। लेखक ने तथ्यों और साक्ष्यों को
सामने रख कर सत्य को उद्घाटित किया है, जो मोपला विद्रोह के यथार्थ को स्पष्ट कर देता है।“It would be well if Mr. Gandhi could be taken into Malabar to see with his own eyes the ghastly horrors which have been created by the preaching of himself and his “loved brothers” Muhammad and Shaukat Ali…How does Mr. Gandhi like the Mopla spirit as shown by one of the prisoners in the Hospital, who was dying from the results of asphyxiation? He asked the surgeon, if he was going to die, and the Surgeon answered that he feared he would not recover. “Well, I’m glad I killed fourteen infidels,” said the Brave, God-fearing Mopla, whom Gandhi so much admires, who “are fighting for what they consider as Religion, and in a manner, they consider as religious.”
Annie Besant
(New India, 29 November 1921)SKU: n/a -
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Hindu Rights Forum, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Muhammad Ka Jeevan (PB)
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Hindi Books, Hindu Rights Forum, Suggested Books, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Muhammad Ka Jeevan (PB)
यह पुस्तक सर विलियम मूर कृत अंग्रेजी पुस्तक The life of Mahomet का हिंदी अनुवाद है। यह पुस्तक पहली बार 1861 में चार खंडों में प्रकाशित हुई थी। यह मोहम्मद के जीवन पर एक प्रमाणिक शोध ग्रंथ है।
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)
Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), Akshaya Prakashan, Hindi Books, Suggested Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र, सही आख्यान (True narrative)Musalmano Ki Ghar Wapsi.. Kyon Aur Kaise?
अस्त्र-शस्त्र का उत्तर अस्त्र-शस्त्र से देना उचित है। लेकिन विचारों का उत्तर तो विचार ही हो सकता है। किसी विचार, किसी लेख-कविता या पुस्तक के उत्तर में तलवार निकालना मजबूती नहीं, कमजोरी की निशानी है। किन्तु अरब से लेकर यूरोप, एसिया, अफ्रीका तक, हर कहीं इस्लामी नेता और संगठन सरल, संयत, वैचारिक संघर्ष से बचते हैं। इसे सदैव हिंसा से दबाने की कोशिश करते हैं। सदियों से, बल्कि आरंभ से ही, इस में कोई बदलाव नहीं आया है। स्वयं प्रोफेट मुहम्मद ने अपने विचारों पर किसी के प्रतिवाद, संदेह का यही उत्तर दिया था।
तब क्या इस्लाम कागजी शेर नहीं है? एक दुर्बल, भयभीत मतवाद, जो केवल धमकी, हिंसा, छल-कपट, अनुचित रूप से उठाई जा रही विशेष सुविधाओं, अनुचित-असमान नियमों के बल से चल रहा है। ऐसा मत-विश्वास कितने दिन चलता रह सकता है? यह एक बुनियादी प्रश्न है, जिस से भारत और वर्तमान विश्व की कई समस्याएं जुड़ी हुई हैं।
इस समस्या का समाधान सैनिक तरीके से नहीं, बल्कि शिक्षा में है। ध्यान दें, कुरान में असंख्य बार कई प्रसंगों में ‘प्रमाण’, ‘स्पष्ट प्रमाण’, की बातें की गई है। अतः मुसलमान किसी विचार-बिन्दु, विषय में प्रमाण, सबूत, एविडेंस के महत्व से परिचित हैं। केवल उन्हें प्रमाण वाली कसौटी को उन विचारों, कानूनों, विवरणों, दलीलों पर भी लागू करके देखने की जरूरत है जिन्हें वे स्वतः-प्रमाणिक मानते रहे हैं। जैसे, मूर्तिपूजकों को घृणित समझना; इस्लाम से पहले या बाहर के मानव-समाजों को मूर्ख मानना; जीने के बदले मरने को अधिक अच्छा मानकर ‘जन्नत’ पाने के लिए हर तरह के चित्र-विचित्र काम करना; जिहाद को सब से बड़ा कर्तव्य समझना; मनुष्य को गुलाम बनाकर बेचना-खरीदना; स्त्रियों को वस्तु-संपत्ति मात्र भोग रूप में देखना; आदि मान्यताओं को विवेक से देखने की जरूरत है। ये मान्यताएं कोई ईश्वरीय देन या ‘सर्वकालिक सत्य’ नहीं हैं – इस की परीक्षा की जानी और शिक्षा दी जानी चाहिए। (पुस्तक अंश)
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Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Muslim Separatism: Causes And Consequences
Abrahamic religions (अब्राहमिक मजहब), English Books, Suggested Books, Voice of India, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Muslim Separatism: Causes And Consequences
The book discusses the pattern through which Islam has been breaking the Hindu society and its motherland, taking away Afghanistan, Pakistan, Bangladesh and following up the battle in Kashmir and Assam.
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Narrative ka Mayajaal (PB)
-17%Hindi Books, Prabhat Prakashan, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Narrative ka Mayajaal (PB)
आखिर हम कौन हैं और हमारी पहचान क्या है ? क्या भारत 15 अगस्त, 1947 से पहले एक राष्ट्र नहीं था ?
क्या भारत में बहुलतावाद, लोकतंत्रऔर पंथनिरपेक्षता, विदेशियों द्वारा दिया गया कोई उपहार है ? क्या ब्रितानियों ने हमें देश का स्वरूप दिया ? क्या आक्रांताओं को राष्ट्र-निर्माता कह सकते हैं? द्विराष्ट्र सिद्धांत की सच्चाई क्या है ? क्यों छल-बल से समाज में मतांतरण अब भी जारी है ? क्यों देश का एक राजनीतिक वर्ग बहुसंख्यकों को तोड़ने हेतु उन्हें जातियों मेंबाँटकर टकराव, तो अल्पसंख्यकों को मजहब के नाम पर एकजुट रखने का प्रयास करता है? किसने ब्राह्मणों का दानवीकरण किया?
हिंदुत्व पर कैसे विषवमन करके फर्जी हिंदू/भगवा आतंकवाद का नैरेटिव बनाया गया ? जब भगवान् श्रीराम सनातन भारत की सांस्कृतिक पहचान हैं, तो उनकी जन्मभूमि अयोध्यामें मंदिर निर्माण में लगभग 500 वर्ष क्यों लग गए ?
इस प्रकार के कई प्रश्नों के उत्तर और उनमें से जनमे अन्य प्रश्नों का उत्तर क्या हो सकता है, यह सब विमर्श (नैरेटिव) सुनिश्चित करता है।
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Suggested Books, Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
NETAJI GUMNAMI BABA AUR SARKARI JHOOTH
Suggested Books, Vitasta Publishing, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)NETAJI GUMNAMI BABA AUR SARKARI JHOOTH
क्या उत्तर प्रदेश में दशकों तक अज्ञातवास करने वाले गुमनामी बाबा नेताजी सुभाष चन्द्र बोस थे? गहन शोध के पश्चात्, चन्द्रचूड़ घोष और अनुज धर इस निष्कर्ष पर पहुँचे हैं कि सत्य हमारी कल्पनाओं से कहीं अधिक विचित्र है। वे नेताजी ही थे। और यदि यह सत्य है, तो क्यों सरकार के आधिकारिक कथनों एवं जस्टिस विष्णु सहाय आयोग की रिपोर्ट का निष्कर्ष इससे भिन्न हैं? नेताजी कब और कैसे भारत लौटे? क्यों इतने वर्षों तक वे अपने ही देश में छिपकर रहे? क्यों सरकार इस सत्य को हम देशवासियों से छिपा रही है?—इन सभी प्रश्नों के समाधान आपको विचलित कर देंगे। जानिए: कैसे कई दशकों से इस देश की जनता की आँखों में धूल झोंकी जा रही है। कैसे फ़ॉरेन्सिक विज्ञान ने नाम पर बनाईं गईं DNA एवं हस्तलेख की झूठी रिपोर्टें और संसद में दिए गए झूठे वक्तव्य। …सरकार नहीं चाहती कि आप ये सब कुछ जानें।
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English Books, Harper Collins, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Ninety Days (PB)
-10%English Books, Harper Collins, Suggested Books, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Ninety Days (PB)
About the Book: Ninety Days: The True Story of the Hunt for Rajiv Gandhis Assassins At 10.20 p.m. on 21 May 1991, a young woman bowed before Rajiv Gandhi at an election rally in Sriperumbudur, 42 km north of Chennai. And then there was an explosion. This book is the definitive account of one of the most controversial crimes in contemporary India. It unravels the complex plot hatched by the LTTE (Liberation Tigers of Tamil Eelam) to ensure that Rajiv Gandhi did not return to power in the 1991 general elections. Ninety Days provides a blow-by-blow account of how the Special Investigation Team of the CBI
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Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
Hindi Books, SAMYAK PRAKASHAN, Suggested Books, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Pakistan Athva Bharat Ka Vibhajan
लेखक – डॉ. बी. आर. आंबेड़कर
आजकल भारत में मुख्य मुद्दा सवर्ण-दलित का है। इसमें कुछ बामसेफी, भीमसेना, सांभाजी ब्रिग्रेड़ वाले हिन्दू विरोधी गतिविधियों में भाग लेते है। इनका साथ मुस्लिम और ईसाई मिशनरी देते हैं। आजकल प्रचलित एक नेशनल दस्तक चैनल भी दलित-मुस्लिमों द्वारा सम्यक रुप से प्रसारित किया जाता है। नेशनल दस्तक से अतिरिक्त अन्य मंचों पर भी जैसे कि सोशल नेटवर्किंग साईटों, पत्र एवं पत्रिकाओं में भी दोनों मिलकर आपस में हिन्दु समाज के विरोध में अपने लेखों का सम्पादन करते है। वैदिक संस्कृति को आपस में मिलकर नष्ट करना चाहते हैं। यहां दलितों को सोचना चाहिए कि मुस्लिम उनकें साथ इसलिये नहीं है कि वे दलितों का उत्थान चाहते हैं बल्कि इसलिए है कि सवर्ण दलितों में फूट हो और हम लोग उसका फायदा उठाकर इससे लाभ उठायें।
दलित समाज जिन अम्बेड़कर जी को मानता है, वे स्वयं मुस्लिम कट्टरता और मुस्लिम धर्म ग्रन्थों के बहुत विरोध में थे। डॉ. अम्बेडकर किसी के मुस्लिम हो जाने पर मात्र मतपरिवर्तन नहीं मानते थे बल्कि वे इसे संस्कृति और सभ्यता परिवर्तन भी मानते थे। उनका कथन था कि विदेशी मत को अपनाने से व्यक्ति अपनी राष्ट्रीयता को नष्ट कर देता है और जिस विदेशी मत को उसने ग्रहण किया है उसी देश की राष्ट्रीयता का अनुयायी बन जाता है। यहीं कारण है कि डॉ. अम्बेडकर जी ने मतान्तरण में किसी विदेशी मुस्लिम और ईसाई मत न ग्रहण करके मात्र बौद्धमत अपनाया था।
ड़ॉ. अम्बेड़कर इस्लाम तुष्टिकरण के भी खिलाफ थे, उन्होनें कांग्रेस आदि के मुस्लिम तुष्टिकरण से अनेकों बार असंन्तुष्टि दर्शाई है किन्तु उनके आजकल के अनुयायी स्वयं मुस्लिम तुष्टिकरण के पक्ष में है। ड़ॉ. अम्बेड़कर नें तुष्टिकरण पर कुछ प्रश्न किये थे जो आज भी प्रासंगिक है –
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता ही एकमात्र भारत की राजनीतिक अभियोत्थान हेतु आवश्यक थी?
- क्या हिन्दू – मुस्लिम एकता तुष्टीकरण या समझौते के माध्यम से प्राप्त की जा सकती थी।
- यदि एकता तुष्टिकरण से प्राप्त की जाती, वे कौन सी नई सुविधाएं हैं जो मुस्लिमों को दी जानी चाहिए।
- यदि समझौता विकल्प है तो समझौते की शर्त हिन्दुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन है अथवा दो संविधान और सभाओं और सेवाओं में 50% भागेदारी?
- क्या दोनों सम्प्रदायों का एक मान्य संविधान हो सकता है?
- बगैर भौगोलिक एकता के हमेशा सीमा विवाद रहेंगे?
- क्या शान्ति से विभाजन नहीं हो सकता था?
इस प्रकार कई प्रश्न थे जो मुस्लिम तुष्टिकरण के सख्त विरोध में दृष्टिगोचर होते है। इन्हीं सब कथनों को लेते हुए, उन्होनें एक पुस्तक Thoughts on Pakistan लिखी थी, इसी पुस्तक का द्वितीय संस्करण Pakistan or Partition of India नाम से प्रकाशित हुई। इस पुस्तक में डॉ. अम्बेड़कर के जो इस्लाम पर मन्तव्य थे, वे प्रत्येक हिन्दू और नवबौद्ध को अवश्य पढ़नें चाहिए –
१. हिन्दू काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं-”मुसलमानों के लिए हिन्दू काफ़िर हैं, और एक काफ़िर सम्मान के योग्य नहीं है। वह निम्न कुल में जन्मा होता है, और उसकी कोई सामाजिक स्थिति नहीं होती। इसलिए जिस देश में क़ाफिरों का शासनहो, वह मुसलमानों के लिए दार-उल-हर्ब है ऐसी सति में यह साबित करने के लिए और सबूत देने की आवश्यकता नहीं है कि मुसलमान हिन्दू सरकार के शासन को स्वीकार नहीं करेंगे।” (पृ. ३०४)
२. मुस्लिम भ्रातृभाव केवल मुसलमानों के लिए-”इस्लाम एक बंद निकाय की तरह है, जो मुसलमानों और गैर-मुसलमानों के बीच जो भेद यह करता है, वह बिल्कुल मूर्त और स्पष्ट है। इस्लाम का भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृभाव मानवता का भ्रातृत्व नहीं है, मुसलमानों का मुसलमानों से ही भ्रातृत्व है। यह बंधुत्व है, परन्तु इसका लाभ अपने ही निकाय के लोगों तक सीमित है और जो इस निकाय से बाहर हैं, उनके लिए इसमें सिर्फ घृणा ओर शत्रुता ही है। इस्लाम का दूसरा अवगुण यह है कि यह सामाजिक स्वशासन की एक पद्धति है और स्थानीय स्वशासन से मेल नहीं खाता, क्योंकि मुसलमानों की निष्ठा, जिस देश में वे रहते हैं, उसके प्रति नहीं होती, बल्कि वह उस धार्मिक विश्वास पर निर्भर करती है, जिसका कि वे एक हिस्सा है। एक मुसलमान के लिए इसके विपरीत या उल्टे सोचना अत्यन्त दुष्कर है। जहाँ कहीं इस्लाम का शासन हैं, वहीं उसका अपना विश्वासहै। दूसरे शब्दों में, इस्लाम एक सच्चे मुसलमानों को भारत को अपनी मातृभूमि और हिन्दुओं को अपना निकट सम्बन्धी मानने की इज़ाजत नहीं देता। सम्भवतः यही वजह थी कि मौलाना मुहम्मद अली जैसे एक महान भारतीय, परन्तु सच्चे मुसलमान ने, अपने, शरीर को हिन्दुस्तान की बजाए येरूसलम में दफनाया जाना अधिक पसंद किया।”
३. एक साम्प्रदायिक और राष्ट्रीय मुसलमान में अन्तर देख पाना मुश्किल-”लीग को बनाने वाले साम्प्रदायिक मुसलमानों और राष्ट्रवादी मुसलमानों के अन्तर को समझना कठिन है। यह अत्यन्त संदिग्ध है कि राष्ट्रवादी मुसलमान किसी वास्तविक जातीय भावना, लक्ष्य तथा नीति से कांग्रेस के साथ रहते हैं, जिसके फलस्वरूप वे मुस्लिम लीग् से पृथक पहचाने जाते हैं। यह कहा जाता है कि वास्तव में अधिकांश कांग्रेसजनों की धारण है कि इन दोनों में कोई अन्तर नहीं है, और कांग्रेस के अन्दर राष्ट्रवादी मुसलमानों की स्थिति साम्प्रदायिक मुसलमानों की सेना की एक चौकी की तरह है। यह धारणा असत्य प्रतीत नहीं होती। जब कोई व्यक्ति इस बात को याद करता है कि राष्ट्रवादी मुसलमानों के नेता स्वर्गीय डॉ. अंसारी ने साम्प्रदायिक निर्णय का विरोध करने से इंकार किया था, यद्यपिकांग्रेस और राष्ट्रवादी मुसलमानों द्वारा पारित प्रस्ताव का घोर विरोध होने पर भी मुसलमानों को पृथक निर्वाचन उपलब्ध हुआ।” (पृ. ४१४-४१५)
४. भारत में इस्लाम के बीज मुस्लिम आक्रांताओं ने बोए-”मुस्लिम आक्रांता निस्संदेह हिन्दुओं के विरुद्ध घृणा के गीत गाते हुए आए थे। परन्तु वे घृणा का वह गीत गाकर और मार्ग में कुछ मंदिरों को आग लगा कर ही वापस नहीं लौटे। ऐसा होता तो यह वरदान माना जाता। वे ऐसे नकारात्मक परिणाम मात्र से संतुष्ट नहीं थे। उन्होंने इस्लाम का पौधा लगाते हुए एक सकारात्मक कार्य भी किया। इस पौधे का विकास भी उल्लेखनीय है। यह ग्रीष्म में रोपा गया कोई पौधा नहीं है। यह तो ओक (बांज) वृक्ष की तरह विशाल और सुदृढ़ है। उत्तरी भारत में इसका सर्वाधिक सघन विकास हुआ है। एक के बाद हुए दूसरे हमले ने इसे अन्यत्र कहीं को भी अपेक्षा अपनी ‘गाद’ से अधिक भरा है और उन्होंने निष्ठावान मालियों के तुल्य इसमें पानी देने का कार्य किया है। उत्तरी भारत में इसका विकास इतना सघन है कि हिन्दू और बौद्ध अवशेष झाड़ियों के समान होकर रह गए हैं; यहाँ तक कि सिखों की कुल्हाड़ी भी इस ओक (बांज) वृक्ष को काट कर नहीं गिरा सकी।” (पृ. ४९)
५. मुसलमानों की राजनीतिक दाँव-पेंच में गुंडागर्दी-”तीसरी बात, मुसलमानों द्वारा राजनीति में अपराधियों के तौर-तरीके अपनाया जाना है। दंगे इस बात के पर्याप्त संकेत हैं कि गुंडागिर्दी उनकी राजनीति का एक स्थापित तरीका हो गया है।” (पृ. २६७)
६. हत्यारे धार्मिक शहीद-”महत्व की बात यह है कि धर्मांध मुसलमानों द्वारा कितने प्रमुख हिन्दुओं की हत्या की गई। मूल प्रश्न है उन लोगों के दृष्टिकोण का, जिन्होंने यह कत्ल किये। जहाँ कानून लागू किया जा सका, वहाँ हत्यारों को कानून के अनुसार सज़ा मिली; तथापि प्रमुख मुसलमानों ने इन अपराधियों की कभी निंदा नहीं की। इसके वपिरीत उन्हें ‘गाजी’ बताकर उनका स्वागत किया गया और उनके क्षमादान के लिए आन्दोलन शुरू कर दिए गए। इस दृष्टिकोण का एक उदाहरण है लाहौर के बैरिस्टर मि. बरकत अली का, जिसने अब्दुल कयूम की ओर से अपील दायर की। वह तो यहाँ तक कह गया कि कयूम नाथूराम की हत्या का दोषी नहीं है, क्योंकि कुरान के कानून के अनुसार यह न्यायोचित है। मुसलमानों का यह दृष्टिकोण तो समझ में आता है, परन्तु जो बात समझ में नहीं आती, वह है श्री गांधी का दृष्टिकोण।”(पृ. १४७-१४८)
७. हिन्दू और मुसलमान दो विभिन्न प्रजातियां-”आध्याम्कि दृष्टि से हिन्दू और मुसलमान केवल ऐसे दो वर्ग या सम्प्रदाय नहीं हैं जैसे प्रोटेस्टेंट्स और कैथोलिक या शैव और वैष्णव, बल्कि वे तो दो अलग-अलग प्रजातियां हैं।” (पृ. १८५)
८. हिन्दू-मुस्लिम एकता असफल क्यों रही ?-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की विफलता का मुखय कारण इस अहसास का न होना है कि हिन्दुओं और मुसलमानों के बीच जो भिन्नताएं हैं, वे मात्र भिन्नताएं ही नहीं हैं, और उनके बीच मनमुटाव की भावना सिर्फ भौतिक कारणों से ही नहीं हैं इस विभिन्नता का स्रोत ऐतिहासिक, धार्मिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक दुर्भावना है, और राजनीतिक दुर्भावना तो मात्र प्रतिबिंब है। ये सारी बातें असंतोष का दरिया बना लेती हैं जिसका पोषण उन तमाम बातों से होता है जो बढ़ते-बढ़ते सामान्य धाराओं को आप्लावित करता चला जाता हैं दूसरे स्रोत से पानी की कोई भी धारा, चाहे वह कितनी भी पवित्र क्यों न हो, जब स्वयं उसमें आ मिलती है तो उसका रंग बदलने के बजाय वह स्वयं उस जैसी हो जाती हैं दुर्भावना का यह अवसाद, जो धारा में जमा हो गया हैं, अब बहुत पक्का और गहरा बन गया है। जब तक ये दुर्भावनाएं विद्यमान रहती हैं, तब तक हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता की अपेक्षा करना अस्वाभाविक है।” (पृ. ३३६)
९. हिन्दू-मुस्लिम एकता असम्भव कार्य-”हिन्दू-मुस्लिम एकता की निरर्थकता को प्रगट करने के लिए मैं इन शब्दों से और कोई शबदावली नहीं रख सकता। अब तक हिन्दू-मुस्लिम एकता कम-से-कम दिखती तो थी, भले ही वह मृग मरीचिका ही क्यों न हो। आज तो न वह दिखती हे, और न ही मन में है। यहाँ तक कि अब तो गाँधी जी ने भी इसकी आशा छोड़ दी है और शायद अब वह समझने लगे हैं कि यह एक असम्भव कार्य है।” (पृ. १७८)
(सभी उद्धरण बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर सम्पूर्ण वाड्मय, खंड १५-‘पाकिस्तान और भारत के विभाजन, २००० से लिए गए हैं)
इस पुस्तक की आज के समय उपयोगिता देखते हुए, इसे हमारे मंच से भी उपलब्ध करवाया जा रहा है, जिससे कि प्रत्येक व्यक्ति इसे पढ़े और विशेषकर नवबौद्ध समाज भी और समझे कि दलित-मुस्लिम एकता सब प्रकार से असम्भव है। इस पुस्तक को यदि विभिन्न नेता बिना पक्षपात के पढ़गें तो वे भी मुस्लिम तुष्टिकरण को गलत ही पायेंगे।
प्रस्तुत पुस्तक हिन्दी भाषा में होने से सामान्य पाठक भी डॉ. अम्बेडकर के मुस्लिम तुष्टिकरण और इस्लाम पर विचारों से परिचित हो सकता है।
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Quran To Hai Par Musalaman Koi Nahin
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जो लोग इस्लाम की आड़ में ‘लॉ लेसनेस’ करते हैं, वे स्वयं इस्लाम के आधारभूत स्तंभों का पालन नहीं करते। अतः कुरान हदीस के अनुसार उन्हें मोमिन नहीं कहा जा सकता। ऐसे लोग तो वस्तुतः बनावटी मुसलमान है। इस्लाम इनके लिए अवैध आपराधिक कार्यों के लिए एक ढाल भर है, इनको इस्लाम में कोई आस्था नहीं है। कुरान के अनुसार, उन्हें इस्लाम के नाम पर मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, मजार, दरगाह आदि पर और उनके प्रबंध पर कोई भी हक नहीं है।
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