जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
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Prabhat Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Pheriwala Rachnakar
आत्मकथा ईमानदारी माँगती है, जिसे यहाँ बखूबी निभाया गया है। जहाँ-जहाँ इस लेखक में कमजोरियाँ नजर आईं, पूरी ईमानदारी से उसने स्वीकार किया। लेखकीय जीवन के वे राज भी बयाँ हुए हैं, जिन्हें एक उम्र तक कलम की नोक तले दबाकर रखा गया। ‘कृष्ण की आत्मकथा’ का यह रचनाकार अपनी आत्मकथा में भी उन्हीं योगेश्वर के आशीर्वाद की प्रतिध्वनि सुनता नजर आया है, वरना अपनी आँखों से उस युग की तस्वीर कैसे देख सकता था, जिसे कृष्ण ने भोगा था। उस संत्रास का कैसे अनुभव कर सकता था, जिसे उस युग ने झेला था। उस मथुरा को कैसे समझ पाता, जो भगवान् कृष्ण के अस्तित्व की रक्षा के लिए नट की डोर के तनाव पर सिर्फ एक पैर से चली। उस दुखी ब्रज के प्रेमोन्माद को कैसे महसूस करता, जो कृष्ण के वियोग में विरहाग्नि बिखेर रही थी।
जिंदगी के इस महाभारत में लेखक जयी हुआ या पराजित, इसका उत्तर सिर्फ समय के पास है। मगर यह आत्मकथा इस बात की गवाह है कि यह लड़ाई उन्होंने पूरी शिद्दत, ईमानदारी और पराक्रम से लड़ी।
मनु शर्मा की यह आत्मकथा फेरीवाला रचनाकार कृष्ण तथा अन्य चरित्रों की आत्मकथाओं की तरह पाठकों के हृदय में स्थान बनाएगी। पूरी शिद्दत और आत्मीयता के साथ पढ़ी जाएगी, इसमें कोई संशय नहीं है। आत्मकथाओं की शृंखला में एक और पठनीय आत्मकथा।मनु शर्मा ने साहित्य की हर विधा में लिखा है। उनके समृद्ध रचना-संसार में आठ खंडों में प्रकाशित ‘कृष्ण की आत्मकथा’ भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास है। ललित निबंधों में वे अपनी सीमाओं का अतिक्रमण करते हैं तो उनकी कविताएँ अपने समय का दस्तावेज हैं।
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English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Prithviraj Chauhan and His Times
-15%English Books, Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणPrithviraj Chauhan and His Times
Prithviraj Chauhan and His Times : My aim in writing this book is to study the struggle of Prithviraj Chauhan III against the Turks and to highlight the cultural activities of that period. The scholars stress exclusively on the chronicles of the Muslim-Court annalists who familiarized us with the invader’s version of conquest. The heroic resistance offered by the Chauhan rulers and other Rajputs residing on the border areas has not so far been studied in correct perspective. The Goverdhan and other memorial inscriptions are very important. These were engraved in order to commemorate the heroic deeds of those brave persons, who gave away their lives while fighting against the invaders in order to rescue “cows women and religious shrines”. good number of such inscriptions are still available on the border areas of Rajasthan. I have utilised some of these inscriptions for the first time.
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Purushottam
Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताPurushottam
पुरुषोत्तम
ऐतिहासिक एवं पौराणिक गाथाओं को आधुनिक सन्दर्भ प्रदान करने में सिद्धहस्त, बहुचर्चित लेखक की यह नवीनतम औपन्यासिक कृति अपनी भाषा के माधुर्य एवं शिल्पगत सौष्ठव द्वारा पाठक को मुग्ध किए बिना नहीं रहेगी। ‘पहला सूरज’, एवं ‘पवन पुत्र’ जैसी बहुचर्चित कृतियों के पश्चात् श्रीकृष्ण जीवन के उत्तरार्ध पर आधारित यह बृहत् उपन्यास डॉ. मिश्र की लेखकीय यात्रा का एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव है जो केवल अपनी आधुनिक दृष्टि ही नहीं अपितु विचारों की नवोन्मेषता और मौलिकता के कारण भी विशिष्ट है।
डॉ. मिश्र शिल्पकार पहले हैं और उपन्यासकार बाद में, यही कारण है कि पुस्तक अथ से इति तक पाठक के मन को बाँधने में सक्षम है और श्रीकृष्ण के बहुआयामी व्यक्तित्व के जटिलतम प्रसंग भी बोधगम्य एवं सहज सरल बन आए हैं।
श्रीकृष्ण को लेखक ने पुरुषोत्तम के रूप में ही देखा है और उसकी यह दृष्टि इस कृति को प्रासंगिक के साथ-साथ उपयोगी भी बना जाती है। विघटनशील मानवीय मूल्यों के इस काल में आदर्शों एवं मूल्यों की पुनर्स्थापना के सफल प्रयास का ही नाम है ‘पुरुषोत्तम’।
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English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RABINDRANATH TAGORE AMONG SAINTS
-10%English Books, Vitasta Publishing, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRABINDRANATH TAGORE AMONG SAINTS
In the eyes of the world, Rabindranath Tagore is celebrated as the illustrious bard of Bengal, a name that resonates globally. His literary works and philosophy have touched the hearts of generations, leaving an enduring legacy. Yet, hidden behind the timeless verses and laurels lies a lesser-known truth. Throughout his life, Tagore sought the company of saints, a quest that profoundly enriched his spirit. These personal encounters with India’s spiritual luminaries, however, remained concealed in silence, unspoken and unwritten. It was Bipul Kumar Gangopadhyay, a renowned figure in India’s spiritual and literary realms, whose determination and relentless research culminated in Sadhu Sannidhey Rabindranath, a Bengali masterpiece that reveals Tagore’s intimate experiences with nineteen sages. Rabindranath Tagore Among Saints is the first-ever English translation of these sacred encounters. This book illuminates the profound spirituality that shaped the sage poet’s journey, offering readers a fresh perspective on the man revered as Gurudev by Mahatma Gandhi. It invites you on a spiritual pilgrimage to the inner sanctum of a literary giant’s soul.
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Raj Darbar aur Raniwas
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRaj Darbar aur Raniwas
पुस्तक ‘राज दरबार और रनिवास’ में नगर परिक्रमा की उस सामग्री का समावेश है, जिसमें जयपुर के राजमहलों, छत्तीस कारखानों, मंदिरों और जनानी ड्योढ़ी का सविस्तार वर्णन है। जयपुर के राजमहल अपने आप में वास्तुकला के नमूने हैं और शेष नगर से पूर्णतः भिन्न एवं स्वतंत्र इकाई के रूप में विद्यमान हैं। जयपुर रियासत के शासकों का सम्पूर्ण कार्य-क्षेत्र, शासकीय एवं व्यक्तिगत, इस दायरे में आ जाता है। रियासत के शासन में तब छत्तीस कारखानों का अपना महत्त्व था। पुस्तक राज-दरबार और रनिवास में उनके कार्यकलाप का समावेश है। जनानी ड्योढ़ी अभी तक पर्दे में ही रही है, जिस पर पहली बार नगर-परिक्रमा में इतना प्रकाश डाला गया है। प्रस्तुत पुस्तक में कुछ अन्य सामग्री के साथ संदर्भ में कतिपय तथ्य ऐसे हैं, जिनका अभी तक कहीं उल्लेख भी नहीं हुआ है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Raja Bhoj Ki Kathayen
भारतीय इतिहास में सर्वािधक लोकप्रिय राजाओं की अग्रिम पंक्ति में
अपनी पहचान बनानेवाले राजा भोज को भला कौन नहीं जानता! सहनशीलता, दयालुता, न्यायिप्रय, प्रजापालक, वीर, प्रतापी आदि गुणों के स्वामी राजा भोज की वीरता, साहस और न्यायप्रियता की कहानियाँ आज केवल भारतवर्ष में ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व में प्रचलित हैं। कहा जाता है कि राजा भोज अपने काल के लोकनायक के रूप में भी विख्यात हो चुके थे। उनके जीवन से जुड़ी कहावत ‘कहाँ राजा भोज-कहाँ गंगू तेली’ बहुत लोकप्रिय है। इस कहावत के पीछे राजा भोज के जीवन से जुड़ी अनेक कथाएँ प्रचलित हैं।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Rajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRajasthan ke Pramukh Sant evam Lokdevta
राजस्थान के प्रमुख संत एवं लोक देवता : राजस्थान के मध्यकालीन कवि ईसरदास की ‘परमेसरा’ के रूप में पूजा और साथ ही वीर-योद्धाओं की ‘जूंझारजी’ के रूप में अर्चना इस ‘धोरा-धरती’ की लेखनी एवं खड्ग के सामर्थ्य की साक्षी है। इस क्षेत्र की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति ने इसे एकान्तिक साधना एवं मौलिक चिन्तन की एक समृद्ध परम्परा प्रदान की है। धर्म-अध्यात्म की एक ऐसी अविरत धारा को प्रवाहित किया, जिसका रसास्वादन युगों से होता रहा है। अधिकांश अध्येताओं को राजस्थान की समृद्ध संस्कृति इस आध्यात्मिक पक्ष की अपेक्षा शौर्य-गाथाओं के विवरण अधिक आकर्षित करते रहे है। राजस्थान की आध्यात्मिक संस्कृति के अध्ययन की आवश्यकता के दृष्टिकोण से इस ग्रन्थ का प्रणयन किया गया।
राजस्थान की धार्मिक-आध्यात्मिक परम्परा के सृजन एवं संवर्द्धन का अपना व्यक्तित्व है, अपनी पहिचान है। इस सर्वग्राही समष्टिवादी प्रवृति का अपना मूल्य है। इस दृष्टि से इस संस्कृति के प्रणेताओं तथा उनकी विचार-वृति का अध्ययन न केवल अपेक्षित है प्रत्युत अनिवार्य भी है। इसकी समसामयिक तथा साम्प्रतिक प्रासंगिकता तथा उपयोगिता भी सर्वथा प्रमाणित है। प्रस्तुत ग्रंथ में संत-लोक देवता संस्कृति के महत्वपूर्ण आयामों पर प्रकाश डालने का उद्यम किया गया है। आशा है कि विद्धान पाठकों के लिए यह उपादेय सिद्ध होगा।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ke Veer Jujhar
राजस्थान के वीर जुझार : यह मान्यता भी प्राचीन ग्रन्थों में स्थापित मिलती है कि निरन्तर युद्ध लड़ते रहने वाले ऐसे वीर हमारे यहां हुए हैं कि वे रणस्थल नहीं छोड़ते, सिर कट जाने पर भी युद्ध करते रहते हैं। जीते जी तो युद्धरत रहते ही हैं किन्तु ऐसे वीर सिर गिर जाने पर भी शस्त्र न छोड़कर शत्रुओं का संहार कर देते हैं। बिना सिर वाले (नीचे वाले) शरीर को संस्कृत में ‘कबन्ध’ कहा जाता है। राहु और केतु की कथा सुविदित है, राहु केवल सिर हैं, केतु नीचे वाला शरीर। रामायण, महाभारत, रघुवंश आदि संस्कृत ग्रन्थों के बाद प्राकृत, अपभ्रंश, लोकभाषाओं के आदि के काव्यों में भी ऐसे वर्णन हमें इसी कारण प्राप्त होते हैं, जिनमें युद्ध में (अथवा राहु केतु वाली किसी अन्य घटना के फलस्वरूप) कबन्ध अर्थात् धड़ भी कुछ समय तक लड़ता रहा अथवा प्राण सहित रहा। बाद में ऐसे योद्धाओं के अभिलेख भी रचे गए, जिन्होंने शिरच्छेद के बाद भी युद्ध किया। ऐसे योद्धाओं को जो नाम दिए गए, उनमें एक नाम है ‘जुझार या जूंझार’। जुझारू का अर्थ होता है योद्धा यह सुविदित है। ऐसे योद्धाओं की जो रोमांचक कथाएं रामायण, महाभारत आदि से लेकर मध्यकाल के काव्य ग्रन्थों और इतिहास ग्रन्थों में भी उपलहध होती है, वे दिल दहला देने वाली होती है, यह तो स्पष्ट ही है। ऐसे योद्धाओं में से अनेकों को समाज देवता मानकर पूजने भी लगा था। कुछ योद्धा लोकदेवताओं के मन्दिर, पूजास्थल या स्मारक आज भी देखे जा सकते हैं। राजस्थान में ऐसे जुझारों की गाथाएँ कुछ शताब्दियों से पाई जाती हैं। आज के प्रबुद्ध पाठक की यह जिज्ञासा स्वाभाविक है कि इस बात की तलाश की जाए कि कबन्धों या जुझारों की ऐसी प्रमुख गाथाएं कहां हैं, उनका क्या स्वरूप है, क्या उनके आधार पर कोई महल, मन्दिर, चित्र या अभिलेख भी तैयार हुए हैं आदि।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajasthan ki Sanskriti mein Nari
Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरणRajasthan ki Sanskriti mein Nari
“इस संसार में यदि नारी न होती तो सभ्यता और संस्कृति न होती। इसीलिए किसी समाज के सांस्कृतिक विकास का मानदण्ड नारी की मर्यादा है।” – हजारी प्रसाद द्विवेदी
राजस्थान की संस्कृति में नारी का महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। कुल मर्यादाओं व परम्पराओं के निर्वाह में यहाँ की नारी ने अद्वितीय आदर्श प्रस्तुत किये हैं। वीरांगना, सती और प्रेमिका के रूप में इस प्रदेश की नारी की अपनी निजी विशेषताएँ रही हैं।
संस्कारों के निर्माण में यहाँ की नारी की जो महती भूमिका रही है, वह इस प्रदेश की संस्कृति में अविस्मरणीय है। वैयक्तिक व पारिवारिक आदर्शों की स्थापना, कुल परम्पराओं का निर्वाह तथा सामाजिक व धार्मिक जीवन की समृद्धि और विकास में यहाँ की नारी के अनूठे योगदानों से इस प्रदेश की संस्कृति गरिमामय और जाज्वल्यमान बनी। संस्कृति के निर्माण और इसके संवर्धन में यहाँ की नारी सदा सचेष्ट रही है।SKU: n/a -
Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Shakhaon ka Itihas
प्रस्तुत ग्रन्थ में बौद्ध धर्म का त्याग कर आने वाले क्षत्रियों और वेदोद्धार के लिये किये गये कुमारिल एवं आदि शंकराचार्य के प्रयासों का उल्लेख करके कई क्षत्रिय वंशों के विषय में प्रचलित कतिपय भ्रामक मतों का खण्डन किया गया है। यह ग्रन्थकार की सराहनीय उपलब्धि है। इस प्रकार विद्वान लेखक ने हमारे इतिहास को लिखने के लिये सांस्कृतिक गहराई में जाने की जो प्रेरणा प्रदान की है उसके लिये वह हम सब की बधाई के पात्र हैं। आशा है कि उनका इस प्रकार अध्ययन और लेखन निरन्तर जारी रहेगा। भारतीय संस्कृति के प्रेमी सज्जनों के लिये और इतिहास-लेखन में रुचि रखने वाले प्रत्येक भारतीय के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है, क्योंकि इसमें किसी संकुचित जातिवाद की अभिव्यक्ति के स्थान पर उस व्यापक राष्ट्रवादी क्षात्र धर्म के बीज दृष्टिगत होते हैं, जो अथर्ववेदीय ‘बृहत् संवेश्यं राष्ट्रम्’ की कल्पना में प्रस्फुटित हुआ। इसीलिये यह ग्रन्थ वैदिक वर्ण व्यवस्था को महिमा मण्डित करते हुए स्पष्ट कहता है कि, ‘उस समय कोई जाति प्रथा नहीं थी, अपितु गुणों और कर्मों के अनुसार चार वर्णों की रचना होती थी।’ क्षत्रियों अथवा राजपूतों के इतिहास पर अब तक लिखे गये ग्रन्थों में श्री देवीसिंह मंडावा की प्रस्तुत पुस्तक ‘राजपूत शाखाओं का इतिहास’ सर्वाधिक प्रामाणिक और विश्वसनीय मानी जायेगी, ऐसा मेरा विश्वास है। लेखक के व्यापक अध्ययन और अनुशीलन के पश्चात् लिखा गया यह ग्रन्थ राजपूतों के विषय में प्रचारित अनेक भ्रमों का निवारण करता है। इस पुस्तक में जो निष्कर्ष दिये गये हैं, वे सभी अनेक ऐसे प्रमाणों पर आश्रित हैं, जिन्हें प्रस्तुत करने के लिये लेखक ने बड़े परिश्रमपूर्वक अनुसंधान कार्य किया है। विशेषत: राजपूतों को शकों, कुशानों या हूणों की सन्तान कहने वाले इतिहासकारों का खण्डन करने के लिये जो अनेक प्रमाण प्रस्तुत किये हैं, उसके लिये श्री सिंह साधुवाद के पात्र है।
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rajput Vanshawali
राजपूत वंशावली | Rajpoot Vanshawali : राजपूत ग्रन्थमाला में समस्त देश के राजपूतों की उत्पत्ति के 36 वंश, प्रत्येक वंश की शाखा, परशाखा आदि का विस्तृत विवेचन एवं प्रत्येक वंश के गोत्र, प्रवर, कुलदेवी, कुलदेवता एवं पवित्र परम्पराओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। राजपूत वंशावली ग्रन्थ से समस्त क्षत्रिय समाज को अपने विषय में पूर्ण जानकारी प्राप्त होगी, जिसमें समाज में संगठनात्मक विचारधारा को बल मिलेगा।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)
Ram Manohar Lohia: Jeevan Aur Vyaktitva
-10%Hindi Books, Prabhat Prakashan, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, सही आख्यान (True narrative)Ram Manohar Lohia: Jeevan Aur Vyaktitva
“इतिहास अध्ययन का वह स्त्रोत है, जो मानव जीवन, उसका लक्ष्य तथा उस लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किए गए विभिन्न प्रयासों को विस्तृत रूप से प्रस्तुत करता है। 1917 से 1947 तथा उसके बाद का कालखंड भारतवर्ष के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है, क्योंकि इस युग में कई ऐसे महापुरुषों का प्रादुर्भाव हुआ, जिन्होंने अपनी कृतियों के द्वारा इतिहास में स्वर्णिम स्थान प्राप्त किया।
ऐसे ही महापुरुषों में डॉ. राम मनोहर लोहिया का नाम स्तुत्य है, जिन्होंने आधुनिक भारत के निर्माण में, उसके आर्थिक तथा सामाजिक उत्थान में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। लोहिया का दर्शन शाश्वत है, जो देश व काल की परिधि से ऊपर है। उनके विचारों को हम विश्व-राजनीति में परिलक्षित होते देख रहे हैं। भारतीय राजनीतिज्ञ उनके चिंतन-वर्धन से अत्यधिक प्रभावित तो हैं ही, साथ ही इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि उनके समाजवादी आंदोलन ने जनमानस पर गहरा प्रभाव डाला है। ऐसे बहुआयामी राम मनोहर लोहिया पर यह पुस्तक पाठकों और भावी पीढिय़ों के लिए प्रेरणादायी सिद्ध होगी।”SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Ramakrishna Paramhans
गंगा के किनारे बसा बेलूर मठ अब भी अपने परमहंसी स्वरूप में है। रामकृष्ण का कमरा, उनकी चारपाई सबकुछ वैसा ही है जैसा कभी था। नहीं है तो रामकृष्ण की वह देह, जिसके जरिए उन्होंने अध्यात्म के अनेक अभ्यास किए और संसार को प्रायोगिक भक्ति की प्रामाणिकता से अवगत कराया।
परमहंस के पहले और बाद में भक्ति सिर्फ याचक की याचना से ज्यादा नहीं रही; लेकिन रामकृष्ण ने भक्ति के शाब्दिक कायांतरण के प्रमाण उजागर किए। भक्ति के उनके प्रयोगों की दुनिया शब्द, अर्थ, ध्वनि के आकाशों से घिरी हुई दुनिया है, जिसकी शुरुआत रामकृष्ण स्कूली जीवन में ही कर चुके थे।
भक्ति एक भाव है, स्थिति है, इसलिए उसमें गणित नहीं होता। होता है तो सिर्फ भरोसा और विश्वास। रामकृष्ण अपने स्कूली जीवन में गणित में कमजोर थे, पर उस समय भी वे धार्मिक या धर्म पर बोलनेवाले संतों, महात्माओं को सुनते और अपने दोस्तों को ठीक वैसा ही सुनाकर चकित कर देते। उन्हें रास आता था सिर्फ अध्यात्म का रास्ता।भारत के आध्यात्मिक महापुरुषों में अग्रणी रामकृष्ण परमहंस की पूरी जीवन-यात्रा इस लौकिक जगत् को अतार्किक और अबूझ जगत् से नि:शब्द जोड़ने की यात्रा है। रामकृष्ण परमहंस के जीवन को जानने-समझने में सहायक एक उपयोगी पुस्तक।
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Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Ramakrishna Paramhans (PB)
Prabhat Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRamakrishna Paramhans (PB)
गंगा के किनारे बसा बेलूर मठ अब भी अपने परमहंसी स्वरूप में है। रामकृष्ण का कमरा, उनकी चारपाई सबकुछ वैसा ही है जैसा कभी था। नहीं है तो रामकृष्ण की वह देह, जिसके जरिए उन्होंने अध्यात्म के अनेक अभ्यास किए और संसार को प्रायोगिक भक्ति की प्रामाणिकता से अवगत कराया।
परमहंस के पहले और बाद में भक्ति सिर्फ याचक की याचना से ज्यादा नहीं रही; लेकिन रामकृष्ण ने भक्ति के शाब्दिक कायांतरण के प्रमाण उजागर किए। भक्ति के उनके प्रयोगों की दुनिया शब्द, अर्थ, ध्वनि के आकाशों से घिरी हुई दुनिया है, जिसकी शुरुआत रामकृष्ण स्कूली जीवन में ही कर चुके थे।
भक्ति एक भाव है, स्थिति है, इसलिए उसमें गणित नहीं होता। होता है तो सिर्फ भरोसा और विश्वास। रामकृष्ण अपने स्कूली जीवन में गणित में कमजोर थे, पर उस समय भी वे धार्मिक या धर्म पर बोलनेवाले संतों, महात्माओं को सुनते और अपने दोस्तों को ठीक वैसा ही सुनाकर चकित कर देते। उन्हें रास आता था सिर्फ अध्यात्म का रास्ता।भारत के आध्यात्मिक महापुरुषों में अग्रणी रामकृष्ण परमहंस की पूरी जीवन-यात्रा इस लौकिक जगत् को अतार्किक और अबूझ जगत् से नि:शब्द जोड़ने की यात्रा है। रामकृष्ण परमहंस के जीवन को जानने-समझने में सहायक एक उपयोगी पुस्तक।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियां
Ramkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, संतों का जीवन चरित व वाणियांRamkrishna Paramhans Ke 101 Prerak Prasang
स्वामी राम कृष्ण परमहंस एक महान संत, समाज-सुधारक और हिंदू धर्म के प्रणेता थे। उनका मानना था कि यदि मनुष्य के हृदय में सच्ची श्रद्धा और लगन जग जाए तो ईश्वर का साक्षात्कार कतई मुश्किल नहीं है। वे कहते कि ईश्वर एक ही है, मनुष्यों ने उस तक पहुँचने के मार्ग अलग-अलग बना लिये हैं। वे स्वयं माँ काली के अनन्य भक्त थे और उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उन्हीं की आराधना में व्यतीत किया। उन्होंने हिंदू धर्म की प्रतिष्ठा का कार्य अपने तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि युवा नरेंद्र के रूप में हिंदुत्व की प्रतिष्ठा को विश्वमंच पर प्रस्थापित करने का पुरुषार्थ कर दिखाया। वे स्वयं पढ़े-लिखे नहीं थे, किंतु उन्होंने विश्व को विवेकानंद जैसा सार्वकालिक धर्म-प्रवर्तक दिया। परमहंस के जीवन काल में ही उनकी ख्याति दूर-दूर तक फैल गई थी। फलस्वरूप मैक्समूलर और रोम्याँ रोलाँ जैसे सुप्रसिद्ध पाश्चात्य विद्वानों ने उनकी जीवनी लिखकर अपने को धन्य माना।
इस पुस्तक में स्वामी रामकृष्ण परमहंस के जीवन से जुड़े रोचक एवं प्रेरक प्रसंगों का संकलन किया गया है। इसकी सामग्री रामकृष्ण परमहंस और विवेकानंद पर उपलब्ध साहित्य से प्राप्त की गई। यह पुस्तक स्वामीजी के जीवन को समझने की दिशा में एक विनम्र प्रयास है। आशा है, हमारे प्रबुद्ध पाठक इस पुस्तक को पढ़कर स्वामीजी के जीवन और जीवन-दर्शन को समझ पाएँगे।
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Prabhat Prakashan, इतिहास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rashtra Gaurav Samrat Hemchandra ‘Vikramaditya’
हिंदू सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य (हेमू) को ‘भारत का नेपोलियन’ कहा जाता है। वैश्य परिवार में जनमे हेमू ने 22 लड़ाइयाँ लड़ीं व जीतीं। दिल्ली पर अधिकार करने के बाद हेमू ने अपनी बहादुरी और दूरदर्शिता से राजा विक्रमादित्य की उपाधि प्राप्त की।
इस पुस्तक में हेमू के व्यक्तित्व के यथार्थपरक चित्रण हेतु बिहार के सासाराम क्षेत्र में प्रचलित लोकगीतों व भगवत मुदित द्वारा रचित रसिक अनन्यमाल व राजस्थान से मिले कुछ तथ्यों को भी आधार बनाया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि हेमू एक कुशल संगठक, जनप्रिय नेता, श्रेष्ठ घुड़सवार, तलवारबाज तथा तुलगमा सैनिकों की भाँति घोड़े की पीठ पर बैठे-बैठे ही धनुष से बाणों का संधान करनेवाले एक महान् योद्धा व सेनानायक थे।
उन्होंने लगभग 350 वर्षों की दासता के बाद दिल्ली में पुनः हिंदू साम्राज्य की स्थापना की, लेकिन भारत के भाग्य को यह स्वीकार न था। अतः पानीपत के दूसरे युद्ध में हेमू की आँख में लगे तीर ने जीती बाजी को पराजय में परिवर्तित कर दिया। फिर भी हेमू का स्वाभिमान, देशभक्ति, अपूर्व साहस और बलिदान हम सभी राष्ट्रप्रेमियों के लिए सदैव प्रेरणा का अथाह स्रोत बना रहेगा।
भारत के गौरव सम्राट् हेमचंद्र विक्रमादित्य की प्रेरणाप्रद जीवनी, जो नई पीढ़ी को उनके पराक्रम और शूरवीरता से परिचित करवाएगी।SKU: n/a -
Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
RATN KANGAN TATHA ANYA KAHANIYAN
अलेक्सांद्र कुप्रीन की रत्न-कंगन तथा अन्य कहानियाँ की शीर्षक-कथा रत्न-कंगन एकतरफ़ा प्रेम का मार्मिक आख्यान है, जिस पर 1965 में सोवियत संघ में एक फ़िल्म भी बनी थी। इस अभिशप्त कहानी के केंद्र में एक राजसी महिला से एकतरफ़ा प्रेम में पड़ गया एक साधारण क्लर्क है। जानी-पहचानी सामाजिक स्थिति, जिसमें क्लर्क हास्यास्पद है और राजसी परिवार के हर सदस्य को उसका उपहास उड़ाने का अधिकार है, देखते-देखते उदात्त प्रेम पर लंबे चिंतन के आख्यान में बदल जाती है। अपनी अनेक कहानियों में कुप्रीन ने प्रेम के इस सामाजिक पक्ष – आर्थिक ऊँच-नीच – को बड़ी संवेदनशीलता से छुआ है और हालाँकि लगभग हमेशा ही उनके कथानक में समाज की, बलवान की जीत होती है, यह जीत हमेशा के लिए प्रश्नांकित होने से नहीं बचती। पाठकों के लिए यह तथ्य रोचक होगा कि 1954 में जब युवा लेखक निर्मल वर्मा ने इन कहानियों का अनुवाद किया था, तो उनका अपना देश भी स्वतंत्रता के बाद एक संक्रमण-काल के सम्मुख नियति की पहचान कर रहा था।
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Rajpal and Sons, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rekha: The Untold Story
‘पितृसत्तात्मक फिल्म इंडस्ट्री में दबाई गई एक औरत के बेमिसाल उदय की दास्तान’-वोग। ‘चैंका देने वाले तथ्यों का खुलासा’-डीएन। परिवार के ख़राब आर्थिक हालात में चैदह साल की, मोटे डील-डौल और गहरी रंगत वाली भानुरेखा बालीवुड आईं। कैसे वो फिल्म उद्योग की सबसे ग्लैमरत सेक्स सिंबल रेखा बनी? कैसे उनके बेबाक रवैए और सेक्स पर खुले विचारों ने बालीवुड को हिलाया और कैसे इंडस्ट्री ने उन्हें कुचलने की कोशिश की? यह किताब अपने वक्त के सुपरस्टार के साथ उनके रिश्तों, उनकी दूसरी प्रेम कहानियों, उनके पति की खुदकुशी और अपनी मर्दाना चाल-ढाल वाली उनकी सेक्रेटरी फरज़ाना से उनके अजीबोगरीब रिश्ते की सच्ची दास्तान बयान करती है।
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Vani Prakashan, उपन्यास, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
ROMEO JULIET AUR ANDHERA
द्वितीय विश्वयुद्ध की पृष्ठभूमि में किशोर वय के प्रेमियों की कोमल-करुणहाथा शुरू होती है, जिसमे ईसाई लड़का एक यहूदी लड़की को अपने पढ़ने की कोठरी में छिपा देता है,ताकि वह कन्संट्रेशन केंप भेजे जाने से बच जाए। धीरे-धीरे कोठरी के बाहर का जीवन कोठरी के भीतर के जीवन से इतना घुल-मिल जाते हैं। कि एक ही प्रश्न बचा रहता है- स्वतन्त्रता क्या है? पृथ्वी पर जीवन कि मनी क्या है? प्रेम कि यात्रा को रोचक ढंग से पेश करता ये उपन्यास पाठक को कई ऐसे रंग दिखाता चलता है जो उसने पहले कभी देखे नहीं होंगे।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण
Rusty Aur Cheetah
रस्टी की ज़िन्दगी की कहानियों की कड़ी में यह तीसरी किताब है। रस्टी अपने अभिभावक का घर छोड़ चुका है और कपूर परिवार के साथ रहने आता है। वहाँ वह उनके बेटे किशन को पढ़ाता है और उससे उसकी अच्छी दोस्ती हो जाती है। बेहद सुन्दर, किशन की माँ, मीना कपूर, से रस्टी बहुत प्रभावित है और उनसे बहुत कुछ सीखता है। अचानक मीना की मौत हो जाने के बाद रस्टी और किशन देहरा छोड़ देते हैं और दून घाटी और गढ़वाल के पहाड़ों की ओर निकल जाते हैं। इस दौरान रस्टी और किशन के साथ क्या गुज़रता है यही है इस पुस्तक का ताना-बाना। ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘पद्मश्री’ और ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित रस्किन बॉन्ड की अन्य उल्लेखनीय पुस्तकें हैं – रूम ऑन द रूफ़, वे आवारा दिन, एडवेंचर्स ऑफ़ रस्टी, नाइट ट्रेन ऐट देओली, दिल्ली अब दूर नहीं, उड़ान, पैन्थर्स मून, अंधेरे में एक चेहरा, अजब-गज़ब मेरी दुनिया, मुट्ठी भर यादें, रसिया, रस्टी जब भाग गया, रस्टी की घर वापसी और रस्टी चला लंदन की ओर।
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