उपन्यास
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lagan
कहानी के चरित नायक देवसिंह का असली नाम नंदलाल था। यह बड़ा शक्तिशाली पुरुष था। अस्सी वर्ष की अवस्था में इसको दमरू नामक लोधी ने देखा है, जो सुल्तानपुरा में (चिरगाँव से डेढ़ मील उत्तर) रहता है। इसकी आयु इस समय नब्बे वर्ष की है। वह नंदलाल के बल की बहुत-सी आँखोंदेखी घटनाएँ बतलाता है। नंदलाल का भीषण पराक्रम, जिसका कहानी में वर्णन किया है, सच्ची घटना है। किंवदंती के रूप में अब भी आसपास के देहात में वह प्रसिद्ध है। कुछ घटनाएँ कल्पनामूलक हैं।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Lal Teen Ki Chhat
हिन्दी कहानी को निर्विवाद रूप से एक नयी कथा-भाषा प्रदान करने वाले अग्रणी कथाकार निर्मल वर्मा की साहित्यिक संवेदना एक ‘जादुई लालटेन’ की तरह पाठकों के मानस पर प्रभाव डालती है। प्रायः सभी आलोचक इस बात पर एकमत हैं कि समकालीन कथा-साहित्य को उन्होंने एक निर्णायक मोड़ दिया। ‘लाल टीन की छत’ उनकी सृजनात्मक यात्रा का एक प्रस्थान बिन्दु है जिसे उन्होंने उम्र के एक ख़ास समय पर फोकस किया है। ‘बचपन के अन्तिम कगार से किशोरावस्था के रूखे पाट पर बहता हुआ समय, जहाँ पहाड़ों के अलावा कुछ भी स्थित नहीं है।’
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Lalitaditya
राजा ने यथाशक्ति नम्रता के साथ कहा-‘ हम कश्मीर नरेश, भारत सम्राट् ललितादित्य हैं । तुक्खर देश की ओर जा रहे हैं । ‘
साधु के मुख पर आश्चर्य की एक रेखा तक नहीं खिंची । उसी समता, तटस्थता के साथ बोला-‘ जानते हो, पूर्वजन्म में क्या थे?’
राजा के भीतर विनय की बाढ़-सी आ गई । नम्रता के साथ उत्तर दिया-‘ मैं नहीं जानता, जान ही नहीं सकता । आप योगी हैं, अवश्य हैं । आप ही बतलाइए ।’
साधु ने कुछ क्षण ध्यान लगाने के बाद कहा-‘ तुम पूर्वजन्म में एक समृद्ध गृहस्थ के नौकर थे, जो खेती कराता था । तुम उसका हल जोतते थे । वह गाँव श्रीनगर से बहुत दूर है जहाँ तुम उस भूमि-स्वामी के खेतों में हल जोतकर अपना जीवन चलाते थे । जिन दिनों तुम हल चलाते, भूमि-स्वामी तुम्हारे लिए खेत पर रोटी औंर पानी भेजता था । एक दिन गरमी की ऋतु में बड़े-बड़े बैलों का भारी हल चलाते-चलाते थक गए । दिन- भर हल चलाया, परंतु न रोटी आई और न पानी मिला । आसपास कहीं भी पानी था ही नहीं । भूख और प्यास के मारे तुम्हारा गला सूख गया । तड़प रहे थे कि थोड़ी- सी दूरी पर रोटी-पानी लानेवाला दिखलाई पड़ा । प्रसन्न हो गए । वह एक मोटी रोटी लाया था और एक छोटा-सा घड़ा पानी का । तुमने खाने के लिए हाथ-मुँह धोया ही था कि कहीं से एक ब्राह्मण हाँफता- हाँफता तुम्हारे पास आकर बोला-‘ मत खाओ, मैं भूखों मरा जा रहा हूँ ‘ ।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Aadamkhor
विश्व प्रसिद्ध ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह ही आर.के. नारायण के इस उपन्यास की पृष्ठभूमि भी उनका प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी है। यहां रहने वाले नटराज की शांत ज़िंदगी में तब भूचाल आ जाता है, जब उसकी प्रिंटिंग प्रेस की ऊपरी मंज़िल पर वासु डेरा डाल लेता है। वासु अव्वल दर्जे का गुंडा और फसादी है। उसका पेशा मरे हुए जानवरों की खाल में भूसा भर उन्हें सजावटी रूप देना है, इसलिए वह खुलेआम उनका शिकार करता है। यहां तक कि नटराज की प्यारी बिल्ली भी वासु की भेंट चढ़ जाती है और वह कुछ नहीं कर पाता। बड़े शिकार की तलाश में वासु मंदिर के हाथी पर निशाना साधने की फिराक में है। आखिरकार, नटराज भी वासु को सबक सिखाने की ठान लेता है और बड़ी होशियारी और सावधानी से एक-एक कर उसकी सभी चालों को नाकाम कर देता है। मंदिर में नृत्य करने वाली दिलकश रंगी और नटराज का निजी सहायक शास्त्री ‘मालगुडी का आदमख़ोर’ को और भी रंगीन और दिलचस्प बनाते हैं। उनकी बातें और हरकतें भीतर तक गुदगुदा देती हैं।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Chalta Purza
इस चुलबुले और रोचक उपन्यास में एक बार फिर लेखक आर.के. नारायण ने अपने प्रिय स्थान ‘मालगुडी’ को पृष्ठभूमि में रखा है। मार्गैय्या अपने आप को एक बहुत बड़ा वित्तीय सलाहकार समझता है लेकिन वास्तव में वह एक चलता पुर्ज़ा के अलावा कुछ नहीं जो औरों को सलाह मशवरा देकर, अनपढ़ किसानों को यह समझाकर कि कैसे वे बैंक से ऋण ले सकते हैं और तरह-तरह के छोटे-मोटे फार्म बेचकर अपनी अच्छी खासी आमदनी कर लेता है। उसका ‘दफ़्तर’ है मालगुडी का बरगद का पेड़, जिसके नीचे वह अपनी कलम, स्याही की दवात और टीन का बक्सा लेकर बैठता है और शायद आपको आज भी बैठा मिलेगा…आर.के. नारायण शायद अंग्रेज़ी के ऐसे पहले भारतीय लेखक हैं जिनके लेखन ने न केवल भारतीय बल्कि विदेशी पाठकों में भी अपनी जगह बनाई। उन्होंने अपने उपन्यासों और कहानियों के लिए न केवल रोचक विषयों को चुना, बल्कि उन्हें अपने चुटीले संवादों से इतना चटपटा भी बना दिया कि जिसने भी उन्हें एक बार पढ़ा उसमें नारायण की रचनाओं को पढ़ने की चाहत और बढ़ गई।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mehmaan
काल्पनिक पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास में लेखक आर.के. नारायण ने एक अपने से मिलता-जुलता किरदार रचा है जो बेहद मज़ेदार कहानियां सुनाने वाला बातूनी है। बातू एक पत्रकार के रूप में अपनी जगह बनाने में लगा हुआ है। उसकी मुलाकात होती है डा. रोन से जो मालगुडी में संयुक्त राष्ट्र की एक बहुत बड़ी परियोजना पर काम करने के लिए पहुँचते हैं। डा. रोन बातों में बातू से भी ज़्यादा होशियार हैं और बातू को फुसलाकर उसके ही घर में रहने लगते हैं। पता चलता है कि मालगुडी में आए मेहमान, डा. रोन मालगुडी की किसी लड़की को बहकाने के चक्कर में हैं और तभी उनकी पत्नी भी वहां आ पहुंचती है! क्या होता है इस सबका अंजाम-पढ़िए इस चुलबुली, जादुई कहानी में। विश्वप्रसिद्ध भारतीय लेखक आर.के. नारायण की यह विशेषता रही है कि वह ज़िंदगी की छोटी से छोटी बात को बहुत जीवंत और मनोरंजक बना देते हैं। ‘ गाइड’ और ‘मालगुडी की कहानियां’ की तरह इस उपन्यास में भी जीवन के हर रस का आनन्द पाठक को मिलता है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Mithai Wala
साठ साल की उम्र में जगन आज भी अपने-आपको पूरी तरह जवान रखता है और कड़ी मेहनत से अपनी मिठाई की दुकान चलाता है, जिससे वह अच्छा-खासा मुनाफा भी कमा लेता है। आराम से चल रही जगन की ज़िन्दगी में उथल-पुथल आ जाती है, जब उसका बेटा माली अमरीका से अपनी नवविवाहिता कोरियन पत्नी के साथ मालगुडी आता है और यहां से शुरू होता है दो पीढ़ियों के विचारों के बीच टकराव। भरपूर कोशिश करने के बाद भी जगन अपने पारम्परिक ख्यालों को नहीं बदल पाता और काम-धन्धे को छोड़कर धार्मिक कार्यों और यात्राओं की तरफ अपना मन लगाने की सोचता है और तभी यह खबर आती है कि उसका बेटा पुलिस की हिरासत में है और उसने अपनी पत्नी को भी छोड़ दिया है। इस स्थिति से जगन कैसे निकलता है, पढ़िये इस रोचक उपन्यास में जो आर. के. नारायण के अपने अनूठे ढंग में लिखा गया है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास
Maalgudi Ka Printer
साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत लेखक आर.के. नारायण लिखते तो अंग्रेज़ी में थे लेकिन उनकी सभी पुस्तकों के पात्र और घटनास्थल पूरी तरह भारत की मिट्टी से जुडे़ होते हैं। उनके लेखन में सहजता और मन को गुदगुदाने वाले व्यंग्य का एक अनोखा मिश्रण मिलता है, जो उनकी हर कृति को अपना ही एक अलग रंग प्रदान करता है। ‘मालगुडी का प्रिन्टर’ सम्पत और श्रीनिवास की दोस्ती की कहानी है। सम्पत मालगुडी में एक प्रिंटिंग प्रेस चलाते हैं और श्रीनिवास एक पत्र निकालते हैं, जो सम्पत के प्रेस में छपता है और यहीं से शुरू होती है दोनों की दोस्ती की कहानी जिसमें कई मज़ेदार किस्से, रोचक मोड़ और अजीबो-गरीब परिस्थितियां आती हैं। लेखक के प्रिय काल्पनिक शहर मालगुडी पर आधारित यह एक पठनीय और रोचक उपन्यास है।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Madhavji Scindhia
यह बात उस युग की है जिसके लिए कहा जाना है कि मराठे और जाट हल की नोक से, सिक्ख तलवार की धार से और दिल्ली के सरदार बोतल की छलक से इतिहास लिख रहे थे! और अंग्रेज उस समय क्या थे? क्लाइव के विविध रूपों के समन्वय -व्यवसाय सिपाहीगीरी, भेड़ की खाल उतारनेवाली राजनीतिज्ञता, बेईमानी, शूरता, धूर्तता । उस युग में चुनाव नहीं होते थे, परंतु राजनीतिक, राजनीतिज्ञ और राजदर्शी तो थे ही । और राजनीति के क्षेत्र में भयंकर महत्त्वाकांक्षी भी । राजदर्शी वह जो भेड़ के बाल काटे और राजनीतिक वह जो भेड़ की खाल खींच डालने पर ही जुट पड़े । ऐसे समय में माधवजी (महादजी सिंधिया) पैदा हुए । आँधी-तूफान की भँवरों और असंख्य धक्कों में छाती ताने, सिर सीधा किए हुए एक ही माधव – शायद उस युग में दूसरा कोई नहीं । तभी तो कीन ने कहा था, ” एशिया – भर के जननायकों में कोई भी ऐसा नाम नहीं है जो माधवजी सिंधिया की बराबरी कर सके ।” और जनरल मालकम ने उन्हें ‘Steel Under Velvet Gloves’, ‘ मखमली दस्तानों में फौलाद ‘ की उपाधि प्रदान की । -इसी पुस्तक के परिचय से भारत के महान् राजदर्शी माधवजी सिंधिया का चरित्र प्रस्तुत कर वर्माजी ने भारतीय साहित्य को वह अमर कृति उपलब्ध करा दी है जो आनेवाले समय में भी समाज और राजनीतिज्ञों का मार्गदर्शन करती रहेगी ।
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Prabhat Prakashan, उपन्यास
Maharani Durgawati
दुर्गावती उद्यान में घूमने लगी। फूलों पर अधमुँदी बड़ी-बड़ी ओंखें रिपट-रिपट सी जा रही थीं, पँखुड़ियों की गिनती तो बहुत दूर की बात थी। कभी ऊँचे परकोटे पर दृष्टि जाती, कभी नीचे के परकोटे और ढाल पर, दूर के पहाड़ों पर और बीच के मैदानों के हरे- भरे लहराते खेतों पर। दूर के जंगल में जैसे कुछ टटोल रही हो, फुरेरू आती और नसें उमग पड़तीं। क्या ऐसे धनुष-बाण नहीं बनाए जा सकते, जिनसे कोस भर की दूरी का भी लक्ष्यवेध किया जा सके? हमारे कालंजर की फौलाद संसार भर में प्रसिद्ध है, यहाँ के खग, भाले, तीर, छुरे युगों से ख्याति पाए हुए हैं। सुनते हैं, कभी चार हाथ लंबा तीर तैयार किया जाता था, जो हाथी तक को वेधकर पार हो जाता था। चंदेलों का वैभव फिर लौट सकता है. बघेले, बुंदेले और चंदेले मिलकर चलें तो सबकुछ कर सकते हैं; तुर्क, मुगल, पठान, सबको हरा सकते हैं। कैसे एक हों?
महारानी दुर्गावती उपन्यास में इतिहास, जनता और लेखक एक में घुल-मिल गए हैं। चित्रण में, वर्णन में, भाषा में और शैली में लक्ष्मीबाई जैशा ही तेवर है। लोक-रस कुछ और गाढ़ा ही है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, उपन्यास, कहानियां
Mahatma
ये कहानियाँ मेरे उपन्यासों के अंतराल की उत्पाद हैं; पर ये उपन्यास नहीं हैं—न आकार में और न प्रकार में। यद्यपि आज यह बात भी उठ रही है कि कहानी कोई विधा ही नहीं है। जो कुछ है वह उपन्यास ही है। आकार की लघुता में भी वह उपन्यास है—और विशालता में तो है ही। दोनों में कथा-शिल्प एक है।
मेरा ‘पात्र’ जिन ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर ले चलता है वहाँ मैं अकेला नहीं होता। एक तो मेरा विवेक मेरे साथ होता है और दूसरे, मेरी कल्पना मेरे साथ होती है। विवेक रेखांकन करता है और कल्पना रंग भरती है। रेखांकन के बाहर उसका रंग नहीं जाता। विवेक कल्पना का नियंत्रण है, ‘पकड़’ है। जब कल्पना रेखांकन के बाहर जाने लगती है या वायवी होने लगती है तब विवेक कहता है, ‘ठहरो, कुछ सोच-विचार करो।’…और बाहर जाने की अपनी प्रकृति के बावजूद वह यथार्थ के दायरे में ही रहती है। तब वे चित्र बनते हैं, जिनके कुछ नमूने इस संग्रह में हैं।SKU: n/a -
Rajpal and Sons, उपन्यास
Mahatma Ka Intezaar
महात्मा गांधी और उनके राष्ट्रीय आंदोलन की कहानी के साथ यह दो युवा दिलों की प्रेम कहानी है। दोनों को अपनी-अपनी मंज़िल की तलाश है। दोनों प्रेमी अपनी चाहत को तब तक दबाए रखते हैं जब तक स्वतंत्रता के लिए चलने वाला संघर्ष पूरा नहीं हो जाता और उन्हें एक-दूसरे को अपनाने के लिए महात्मा गांधी की स्वीकृति नहीं मिल जाती। वर्षों चले इस इंतज़ार में उन्हें किन-किन मुसीबतों और ज़ोखिमों से होकर गुज़रना पड़ता है, इसका बेहद रोमांचक वर्णन करता है यह उपन्यास। आर.के. नारायण की अनोखी शैली में लिखा यह बेहद रोचक उपन्यास बाकी उपन्यासों से हटकर है।
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Rajpal and Sons, उपन्यास, ऐतिहासिक उपन्यास, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास
Main Bheeshm Bol Raha Hoon
महाभारत में सबसे विशिष्ट चरित्र भीष्म पितामह का है। अपने पिता की इच्छा पूरी करने के लिए उन्होंने आजन्म ब्रह्मचारी रहने की भीष्म प्रतिज्ञा की और साथ ही राजसिंहासन पर अपने अधिकार को भी तिलांजलि दी। दुर्योधन के विचारों, नीतियों और दुष्कर्मों के घोर विरुद्ध रहते हुए भी कौरवों के पक्ष की सेवा करने की विवशता को स्वीकार किया। राजदरबार में द्रौपदी चीरहरण के समय क्रोध और लज्जा से दाँत पीसकर रह गए। परंतु खुलकर विरोध करने में विवश रहे। महाभारत युद्ध में भी कौरव सेना का सेनापतित्व करना पड़ा। जबकि मन से पाण्डवों के पक्षधर थे। उनका हृदय पाण्डवों के साथ था, शरीर कौरवों की सेवा में। अनेक अन्तर्विरोधों से भरे भीष्म पितामह के चरित्र को बहुत ही पैनी दृष्टि से परखते हुए रोचक ढंग से प्रस्तुत किया है इसके लेखक भगवतीशरण मिश्र ने।
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Vani Prakashan, उपन्यास, कहानियां
MIS TEEN WALA
मंटो फ़रिश्ता नहीं, इन्सान है। इसीलिए उसके चरित्र गुनाह करते हैं। दंगे करते हैं। न उसे किसी चरित्र से प्यार है न हमदर्दी। मंटो न पैगंबर है न उपदेशक। उसका जन्म ही कहानी कहने के लिए हुआ था। इसलिए फ़्साद की बेरहम कहानियाँ लिखते हुए भी उस का कलम पर पूरी तरह काबू रहता था। मंटो की खूबी यह भी थी की वो चुटकी बजते लिखी जाने वाली कहानियाँ भी आज उर्दू-हिन्दी अफ़साने का एक महत्व्व्पूर्ण हिस्सा बन चुकी है। यह पुस्तक पाठक को मंटो के विभिन्न रंगो से रू-ब-रु करती है।
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