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Hindi Books, Lokbharti Prakashan, उपन्यास
Andhvishwas : Prshnchihn Aur Purnviram
चमत्कारी कहलानेवाले बाबा क्या सच में चमत्कार करते हैं? आखिर क्या कारण है कि विज्ञान, तकनीकी और शिक्षा के इतने प्रसार के बाद भी समाज में अंधविश्वासों की जगह बची हुई है? क्यों लोग आज भी अपने दु:खों का, अपनी बीमारियों का इलाज ढूँढ़ने गुरुओं-साधुओं की शरण में जाते हैं? वशीकरण और सम्मोहन क्या वास्तव में होते हैं? कुछ लोग भूतों को देखने तक का दावा करते हैं, इसका आधार क्या है? देवी-देवता या भूतों का संचार ज्यादातर स्त्रियों में ही होता है, ऐसा क्यों? पुनर्जन्म की सच्चाई क्या है? मृतात्मा का आह्वान क्या बला है? और ज्योतिष जिस पर तर्कपरायण लोग भी विश्वास करते पाए जाते हैं, वह क्या है?
‘अंधविश्वास उन्मूलन आन्दोलन’ के अगुआ नरेंद्र दाभोलकर की यह किताब इन सभी सवालों का जवाब वैज्ञानिक तथ्यों के आधार पर देती है। प्रश्नोत्तर शैली में तैयार इस पुस्तक में उन प्रश्नों को संकलित किया गया है, जो साधारण लोगों ने अलग-अलग संवाद शिविरों और व्याख्यान-सत्रों के दौरान प्रस्तुत किए। उन्हीं प्रश्नों के उत्तर देने के क्रम में यह पुस्तक तैयार हुई इसमें हमें अंधविश्वासों के कारण और निवारण, दोनों प्राप्त होते हैं।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, उपन्यास
Antas
‘अंतस’ डॉ. यशिका के अंतकरण की अनुभूतियों का सीधा-सरल काव्यानुवाद है। किसी काव्य-कौशल की स्पर्धा में प्रस्तुत संग्रह की कविताएँ खुद को शामिल नहीं करतीं, ये केवल मन की निष्पाप, पवित्र और प्रांजल अनुभूतियों की छलकन हैं और फिर भी पूर्ण हैं। भारतीय स्त्री के संस्कार, उसका सहज समर्पण और नेह जैसे इन कविताओं में साकार देह पाकर इठला रहा है।
मन्नत पूरी हो जाने जैसी उपलब्धि और जिस्मोजान निछावर कर डालने के समर्पित अहसास, सामीप्य की सिहरन और दूरी होते ही हृदय का अरमान बना लेने की सोच…एक स्त्री के समर्पण और प्रेम का इससे आगे क्या उदाहरण हो सकता है?
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Vani Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, उपन्यास
Antim Aranya
अन्तिम अरण्य यह जानने के लिए भी पढ़ा जा सकता है कि बाहर से एक कालक्रम में बँधा होने पर भी उपन्यास की अन्दरूनी संरचना उस कालक्रम से निरूपित नहीं है। अन्तिम अरण्य का उपन्यास-रूप न केवल काल से निरूपित है, बल्कि वह स्वयं काल को दिक् में-स्पेस में-रूपान्तरित करता है। उनका फॉर्म स्मृति में से अपना आकार ग्रहण करता है- उस स्मृति से जो किसी कालक्रम से बँधी नहीं है, जिसमें सभी कुछ एक साथ है -अज्ञेय से शब्द उधार लेकर कहें तो जिसमें सभी चीज़ो का ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ है। यह ‘क्रमहीन सहवर्तित्व’ क्या काल को दिक् में बदल देना नहीं है?… यह प्राचीन भारतीय कथाशैली का एक नया रूपान्तर है। लगभग हर अध्याय अपने में एक स्वतन्त्र कहानी पढ़ने का अनुभव देता है और साथ ही उपन्यास की अन्दरूनी संरचना में वह अपने से पूर्व के अध्याय से निकलता और आगामी अध्याय को अपने में से निकालता दिखाई देता है। एक ऐसी संरचना जहाँ प्रत्येक स्मृति अपने में स्वायत्त भी है और एक स्मृतिलोक का हिस्सा भी। यह रूपान्तर औपचारिक नहीं है और सीधे पहचान में नहीं आता क्योंकि यहाँ किसी प्राचीन युक्ति का दोहराव नहीं है। भारतीय कालबोध-सभी कालों और भुवनों की समवर्तिता के बोध-के पीछे की भावदृष्टि यहाँ सक्रिय है। -नन्दकिशोर आचार्य
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Antral : Mahasamar – 5
नरेन्द्र कोहली
इस खण्ड में, द्यूत में हारने के पश्चात पाण्डवों के वनवास की कथा है। कुन्ती, पाण्डु के साथ शत्- श्रृंग पर वनवास करने गयी थी। लाक्षागृह के जलने पर, वह अपने पुत्रों के साथ हिडिम्ब वन में भी रही थी। महाभारत की कथा के अन्तिम चरण में, उसने धृतराष्ट्र, गान्धारी तथा विदुर के साथ भी वनवास किया था।…किन्तु अपने पुत्रों के विकट कष्ट के इन दिनों में वह उनके साथ वन में नहीं गयी। वह न द्वारका गयी, न भोजपुर। वह हस्तिनापुर में विदुर के घर रही। क्यों? पाण्डवों की पत्नियाँ देविका, बलंधरा, सुभद्रा, करेणुमती और विजया, अपने-अपने बच्चों के साथ अपने-अपने मायके चली गयीं; किन्तु द्रौपदी काम्पिल्य नहीं गयी। वह पाण्डवों के साथ वन में ही रही। क्यों? कृष्ण चाहते थे कि वे यादवों के बाहुबल से, दुर्योधन से पाण्डवों का राज्य छीनकर, पाण्डवों को लौटा दें, किन्तु वे ऐसा नहीं कर सके। क्यों? सहसा ऐसा क्या हो गया कि बलराम के लिए धृतराष्ट्र तथा पाण्डव, एक समान प्रिय हो उठे, और दुर्योधन को यह अधिकार मिल गया कि वह कृष्ण से सैनिक सहायता माँग सके और कृष्ण उसे यह भी न कह सकें कि वे उसकी सहायता नहीं करेंगे? इतने शक्तिशाली सहायक होते हुए भी, युधिष्ठिर क्यों भयभीत थे? उन्होंने अर्जुन को किन अपेक्षाओं के साथ दिव्यास्त्र प्राप्त करने के लिए भेजा था? अर्जुन क्या सचमुच स्वर्ग गये थे, जहाँ इस देह के साथ कोई नहीं जा सकता? क्या उन्हें साक्षात् महादेव के दर्शन हुए थे? अपनी पिछली यात्रा में तीन-तीन विवाह करनेवाले अर्जुन के साथ ऐसा क्या घटित हो गया कि उसने उर्वशी के काम-निवेदन का तिरस्कार कर दिया। इस प्रकार के अनेक प्रश्नों के उत्तर निर्दोष तर्कों के आधार पर ‘अन्तराल’ में प्रस्तुत किये गये हैं। यादवों की राजनीति, पाण्डवों के धर्म के प्रति आग्रह, तथा दुर्योधन की मदान्धता सम्बन्धी यह रचना पाठक के सम्मुख, इस प्रख्यात कथा के अनेक नवीन आयाम उद्घाटित करती है। कथानक का ऐसा निर्माण, चरित्रों की ऐसी पहचान तथा भाषा का ऐसा प्रवाह -नरेन्द्र कोहली की लेखनी से ही सम्भव है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Antriksh Prashnottary
प्रस्तुत पुस्तक में अंतरिक्ष के विभिन्न विषयों- अंतरिक्ष स्टेशन, तारकीय / क्षुद्र ग्रहीय ” पुच्छल तारा अभियान, अंतरिक्ष परिवहन स्पेस शटल, अंतरिक्ष में प्रमोचन की प्रक्रिया, अंतरिक्ष के रिकॉर्ड, अंतरिक्ष दूरबीनें, कृत्रिम उपग्रह, स्पेस वॉक, अंतरिक्ष परिघटनाओं तथा अंतरिक्ष चयन और प्रशिक्षण का रोचक वर्णन किया गया है । आज अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में हो रहे विभिन्न अनुसंधानों -स्पेस एलीवेटर ( अंतरिक्ष परिवहन का भविष्य का सबसे सस्ता साधन), भूकंपों के पूर्वानुमान में उपग्रहों की भूमिका और सौर ऊर्जा उपग्रहों के बारे में भी रोचक व ज्ञानप्रद जानकारी दी गई है ।
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Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Anubhasya on the Brahmastura
-10%Akshaya Prakashan, अन्य कथेतर साहित्य, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताAnubhasya on the Brahmastura
Anubhasya on The Brahmasutra by Mahaprabhu Sri Vallabhacharya with the commentary Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Purusottamaji and the super-commentary Rasmi on the Bhasyaprakasa of Gosvami Sri Gopesvarji, edited with introduction and appendices etc. by Mulchandra Tulsidas Teliwala, with a new introduction in English and Sanskrit by Goswami Sri Shyam Manoharji Maharaj, Sasthapithadhisvara, Mandira Sri Mukundarayaji Sri Gopalalalaji, Kasi, 4 Volumes.
The present commentaries on Anubhasya known as Prakasa written by Sri Purusottama Carana, a descendent of Sri Vallabhacarya and another on the same known as Rasmi by Sri Yogi Gopesvara, of the same lineage, provide excellent and appropriate interpretation of the tradition. In fact, Anubhasya of Vallabhacarya with these two commentaries given by Sri Purusottamacarana and Gopesvaraji is the most authentic text for providing illuminating interpretation of the Brahmasutra.
This edition was originally printed by Nirnaysagar Press, Bombay, an institution known for publishing and printing the authentic editions. This work was published some eighty years ago, now printed again with a new Introduction in English and Sanskrit by one of the greatest scholars of modern times in the tradition.
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Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीता
Anushangik : Mahasamar – 9
Vani Prakashan, धार्मिक पात्र एवं उपन्यास, महाभारत/कृष्णलीला/श्रीमद्भगवद्गीताAnushangik : Mahasamar – 9
नरेन्द्र कोहली
‘रजत संस्करण’ का यह नवम और विशेष खंड है। इसे ‘आनुषंगिक’ कहा गया, क्योंकि इसमें ‘महासमर’ की कथा नहीं, उस कथा को समझने के सूत्र हैं। हम इसे ‘महासमर’ का नेपथ्य भी कह सकते हैं। ‘महासमर’ लिखते हुए, लेखक के मन में कौन-कौन सी समस्याएँ और कौन-कौन से प्रश्न थे? किसी घटना अथवा चरित्र को वर्तमान रूप में प्रस्तुत करने का क्या कारण था? वस्तुतः यह लेखक की सृजनप्रक्रिया के गवाक्ष खोलने जैसा है। ‘महाभारत’ की मूल कथा के साथ-साथ लेखक के कृतित्व को समझने के लिए यह जानकारी भी आवश्यक है। यह सामग्री पहले ‘जहाँ है धर्म, वहीं है जय’ के रूप में प्रकाशित हुई थी। अनेक विद्वानों ने इसे ‘महासमर’ की भूमिका के विषय में देखा है। अतः इसे ‘महासमर’ के एक अंग के रूप में ही प्रकाशित किया जा रहा है। प्रश्न ‘महाभारत’ की प्रासंगिकता का भी है। अतः उक्त विषय पर लिखा गया यह निबंध, जो ओस्लो (नार्वे) में मार्च 2008 की एक अन्तर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में पढ़ा गया था, इस खंड में इस आशा से सम्मिलित कर दिया गया है, कि पाठक इसके माध्यम से ‘महासमर’ को ही नहीं ‘महाभारत’ को भी सघन रूप से ग्रहण कर पाएँगे। अंत में ‘महासमर’ के पात्रों का संक्षिप्त परिचय है। यह केवल उन पाठकों के लिए है, जो मूल ‘महाभारत’ के पात्रों से परिचित नहीं हैं। इसकी सार्थकता अभारतीय पाठकों के लिए भी है।
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Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Apane Chanakya Swayam Banen
Prabhat Prakashan, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books), राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्रApane Chanakya Swayam Banen
चाणक्य ने अपने पिता की हत्या के बाद बचपन से ही जीवन का उद्देश्य बना लिया था मगध को एक नेक, सुशील, ईमानदारी और प्रतापी राजा प्रदान करना। अपने इस संकल्प को पूर्ण करने के लिए उन्होंने दिन-रात एक कर दिया। उन्होंने सदाचारी और पराक्रमी युवराज खोजने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया और चंद्रगुप्त को ढूँढ़ निकाला। चंद्रगुप्त का पूरा व्यक्तित्व चाणक्य के द्वारा ही गढ़ा गया था। उन्होंने अपने अनेक शिष्यों को जीवन के पाठ पढ़ाए। वे यहीं तक नहीं रुके अपितु अपने ज्ञान को ‘अर्थशास्त्र’ पुस्तक में समेट दिया। अर्थशास्त्र का ग्रंथ आज अनेक रूपों में समाज के पास उपलब्ध है; बस आवश्यकता है तो उस ग्रंथ को गहनता से पढ़ने की, समझने की और जानने की।
चाणक्य ने अपने बुद्धि-कौशल से हर तरह की बाधा से पार पाने के उपाय निकाले हुए थे, जो आज भी उपयोगी हैं। सफलता पाने के लिए यथेष्ट है कि व्यक्ति चाणक्य के व्यक्तित्व को पढ़ें, समझें, जानें और फिर खुद को पहचानें। ऐसा करके प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन को एक नए बिंदु पर ले जा सकता है। वह नया बिंदु संतुष्टि, सुख, खुशी, स्वास्थ्य, समृद्धि सबकुछ प्रदान करता है।
यह पुस्तक आचार्य चाणक्य के जीवन से प्रेरणा लेकर अपने को उनके अनुरूप ढालकर सफलता के शिखर छूने का एक प्रबल माध्यम है।SKU: n/a -
Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Aparajita (PB)
यह पुस्तक सिर्फ महाभारत की कथा का पुनर्पाठ भर नहीं है, अपितु महाभारत के एक प्रमुख महिला पात्र, पांडवों की माता ‘कुंती’ के साथ तात्कालिक समय की मनोयात्रा भी है। पुस्तक बताती है कि कुंती समस्त कथा में परदे के पीछे रहकर भी इतनी महत्त्वपूर्ण क्यों हैं। दरअसल महाभारत में पांडवों की मानसिक गुरु कुंती ही हैं। महाभारत युद्ध कुरुक्षेत्र में अवश्य लड़ा गया, परंतु इसकी पटकथा उस दिन से रचित होना प्रारंभ हो गई थी, जब कुंती ने पांडवों के साथ वनवास न चुनकर विदुर के धर्मगृह में रहना चुना था । बड़े युद्ध न बड़े हथियारों से जीते जाते हैं, न बड़ी सेनाओं से, न बड़े वचनों से; बड़े युद्ध जीते जाते हैं तो बड़े संकल्प से… कुंती ने यह सिद्ध किया ।
कुंती अपराजिता इसलिए नहीं हैं कि वे कभी पराजित नहीं हुईं, बल्कि वे अपराजिता इसलिए हैं कि उन्होंने किसी भी पराजय को स्वयं पर आरोहित नहीं होने दिया, कैसी भी पराजय उनको पराजित नहीं कर पाई। कुंती के साथ-साथ यह पुस्तक कृष्ण की धर्मनीति की भी विवेचना करती है, जो कहती है-धर्म का उद्देश्य एक है, परंतु समय के साथ पथ में सुधार अवश्यंभावी है; पथ-विचलन नहीं होना चाहिए, परंतु पथसुधार आवश्यक है। यह पुस्तक तत्कालीन सामाजिक व्यवस्था, गुप्तचर व्यवस्था व युद्धनीति की भी झलक प्रस्तुत करती है।
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Hindi Books, Sasta Sahitya Mandal, रामायण/रामकथा, सही आख्यान (True narrative)
APNE APNE RAM
भारतीय वाङ्मय के आधिकारिक विद्वान श्री भगवान सिंह की अनुपम कृति है अपने-अपने राम’। राम का चरित्र भारतीय साहित्य में रमा हुआ है। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता है कि विभिन्न भाषाओं में अब तक राम को आधार बनाकर हजारों रचनाएँ लिखी जा चुकी हैं। इसके बावजूद रचनात्मक स्रोत रचनाकारों के लिए कम नहीं हुआ है। हिंदी में तुलसीदास से लेकर निराला तक और उसके बाद के रचनाकारों ने भी राम को आधार बनाकर महत्त्वपूर्ण कृति का सृजन किया। इस कड़ी में यह महाकाव्यात्मक औपन्यासिक रचना स्वयं में महान रचना स्थापित करता है।
इस पुस्तक के प्रकाशन के साथ ही पाठकों और समीक्षकों ने इसे हाथों-हाथ लिया। प्रसिद्ध आलोचक नामवर सिंह ने विश्व की श्रेष्ठतम कृति कहा और यह भी माना कि इसमें कोई दोष नहीं है। ‘हंस’ के संपादक राजेंद्र यादव ने इसकी समीक्षा प्रमुखता से अपनी पत्रिका में छापी। इसकी लोकप्रियता बहुतों के लिए ईष्र्या का केंद्र भी बनी। सस्ता साहित्य मण्डल के लिए यह गौरव की बात है कि सभ्यता विमर्श की अनन्य रचना ‘ अपने-अपने राम’ का प्रकाशन वह करने जा रहा है। हमें पूरा विश्वास है कि अधिक-से- ‘अधिक पाठकों के बीच यह रचना मण्डल के माध्यम से पहुँचेगी, साथ ही ‘लोग अपने स्वजनों को उपहार के रूप में यह पुस्तक भेंट करेंगे।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)
Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
-15%Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास, सही आख्यान (True narrative)Apne Kurukshetra Mein Akela (PB)
जीवन एक कुरुक्षेत्र है, जहाँ निरंतर कौरवों और पांडवों के बीच महाभारत का युद्ध चलता रहता है। पांडवों की अवश्यंभावी जीत सदा ही दुर्धर्ष संघर्षों के पश्चात् ही प्राप्त होती है । यह संघर्ष तामसी और सात्त्विक प्रवृत्तियों के बीच, अच्छे और बुरे के बीच, शोषक और शोषित के बीच, गाँव और शहर के बीच सहित विभिन्न रूपों में निरंतर जारी है। महत्त्वपूर्ण यह है कि हर व्यक्ति अपने जीवन के महाभारत में अकेला होता है, यह युद्ध उसे स्वयं ही लड़ना होता है। अयोध्यानाथ मिश्र के इस कहानी- संकलन ‘अपने कुरुक्षेत्र में अकेला’ की कहानियों में जीवन और समाज की विषमताओं और उनके विरुद्ध संघर्ष की व्यंजना को जनपदीय सरोकारों और रचनात्मक विवेक के साथ बहुत ही प्रतिबद्धता से दर्ज किया गया है ।
अयोध्यानाथ मिश्र अपनी कहानियों में लोक में प्रचलित उक्तियों एवं मुहावरों का बहुत ही सुंदरता से प्रयोग करते हैं। उनकी कहानियाँ भोजपुरी अंचल में व्याप्त देशज व्यवहार एवं मनोजगत् का भूगोल रचती हैं। इनकी कहानियों में जो जीवन का प्रवाह, सौंदर्य, दुविधाएँ, नैतिक संघर्ष एवं सुख-दुःख का भाव – संसार सृजित होता है, वह अत्यंत प्रामाणिक एवं जीवनानुभव से ओतप्रोत प्रतीत होता है। इस संग्रह की कहानियाँ पाठकों का प्यार पाएँगी ऐसी मुझे आशा है।
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Hindi Books, Prabhat Prakashan, इतिहास
Apratim Bharat
ओ मेरे मन, इस पुण्यतीर्थ में हौले से जाग
यह भारत, मानवता का पारावार है
कोई नहीं जानता, किसके आह्वान पर
जानें कितनी धाराएँ मनुष्यता की
दुर्वार वेग से बहती हुई आई यहाँ
खो गई इस महासमुद्र में
—————
जाने कौन-कौन आए, सब इसमें समाए
कोई भी अलग नहीं, कोई विलग नहीं
अब सब एक, एक अस्तित्व है
मेरे ही भीतर है, सारे वे
कोई मुझसे दूर नहीं, सब मेरे मीत हैं
मेरे इस रक्त में सबका संगीत है
गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर के गीत की उपर्युक्त पंक्तियाँ भारत की सनातन संस्कृति और जीवन दर्शन को प्रतिबिंबित करती हैं, जिसमें हम अपने देश की अतुल्य, अप्रतिम और अनुपम जीवनदृष्टि को देख सकते हैं। आज के संदर्भ में उसको अधिक गहनता से, एक बड़े केनवास पर 41 हिंदी तथा अंग्रेजी के आलेखों के माध्यम से समझने और जानने का जिज्ञासा भाव ही ‘अप्रतिम भारत’ के प्रकाशन का उद्देश्य है। भारत की उस एकात्म तथा सर्वात्म जीवनदृष्टि को सही परिप्रेक्ष्य में समझने के लिए ग्रंथ का शुभारंभ भारत के योद्धा संन्यासी स्वामी विवेकानंद के पुण्य स्मरण से किया गया है। वर्ष 1893 में शिकागो के विश्वधर्म सम्मेलन में उनके संबोधन के 125 वर्ष पूर्ण होने की जयंती के अवसर पर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी द्वारा विज्ञान भवन में युवा पीढ़ी को दिया गया व्याख्यान हम सबको ऊर्जा से भरेगा, ऐसा हमारा विश्वास है। भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश तथा भारतीय मनीषा के गहन अध्येता श्री रमेश चंद्र लाहोटी, महामनीषी डॉ. विद्यानिवास मिश्र, प्रखर राजनेता एवं विचारक डॉ. मुरली मनोहर जोशी, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं चिंतक प्रो. रमेश चंद्र शाह, भारतीय चिंतन परंपरा के अग्रणी व्याख्याता श्री कैलाश चंद्र पंत, इतिहासवेत्ता प्रो. रामेश्वर मिश्र ‘पंकज’, पुण्यश्लोक डॉ. वासुदेव शरण अग्रवाल, डॉ. राजेंद्र रंजन चतुर्वेदी के विद्वतापूर्ण आलेखों में हमें आज के परिवेश में भारतीय जीवनदर्शन को समझने में सहायता मिलेगी। नारी विमर्श के अंतर्गत मध्यकाल से आज तक भारतीय नारी जीवन और सोच में आए बदलाव से रुबरु करा रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार श्री विश्वनाथ सचदेव। भारतीय राजनीति को एक नया दृष्टिबोध देनेवाले समाज चिंतक पं. दीनदयाल उपाध्याय के मुंबई में दिए गए व्याख्यान का पुनर्स्मरण हमारी युवा पीढ़ी को समाज परिवर्तन के लिए नए तरीके से सोचने को मजबूर करेगा। जीवन के अर्थ को बहुत ही गहनता से समझा रहा है, सुप्रसिद्ध पर्यावरणविद् एवं गांधीवादी पत्रकार श्री अनुपम मिश्र का आलेख। अमेरिका से भारतीय विद्या की गहन अध्येता डॉ. मृदुल कीर्ति का उपनिषद् का हिंदी अनुवाद पाठकों को पुलकित करेगा और वाराणसी की साहित्य विदुषी श्रीमती नीरजा माधव का लेख भारतीय दर्शन एवं तत्वज्ञान के वैज्ञानिक पहलुओं से परिचित कराएगा। संस्कृति एवं कला विमर्श की दृष्टि से भारतीय संविधान में निवेशों के अभाव से परिचित करा रहे हैं मध्य प्रदेश के संस्कृति विभाग के मुख्य सचिव श्री मनोज कुमार श्रीवास्तव। प्रो. सूर्यप्रसाद दीक्षित और डॉ. तंकमणि अम्मा के लेख हमें वर्तमान समय में सांस्कृतिक नीति तथा भारतीय संस्कृति और मूल्यों में आए बदलाव से अवगत करा रहे हैं, वहीं भारतीय कला-संगीत के मूल्यों के उजले पक्ष से परिचित करा रहे हैं विख्यात कला समीक्षक श्री नर्मदा प्रसाद उपाध्याय। वेदों पर श्री सुरेश चतुर्वेदी तथा श्री दीनानाथ चतुर्वेदी के भारतीय जीवन में चार के अंक का महत्त्व आपको पसंद आएँगे। साथ ही व्यक्ति के तन-मन पर भारतीय संगीत के असर से परिचित करा रही हैं, कहानीकार श्रीमती अल्का अग्रवाल सिग्तिया। डॉ. हंसा प्रदीप के लेख में आपको लोरी का शिशु पर पड़नेवाले प्रभावों की जानकारी मिलेगी।
अंग्रेजी भाषा के खंड में 15 आलेख हैं, जिनमें पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का राष्ट्र को आह्वान का पुनर्स्मरण; प्रख्यात उद्योगपति अजीम प्रेमजी का राष्ट्र निर्माण के लिए शिक्षा प्रणाली में आमूल परिवर्तन का आह्वान तथा डॉ. रवींद्र कुमार का नव-शिक्षा पर आलेख; श्री आर. चिदंबरम का प्राचीन विज्ञान तथा आधुनिक प्रौद्योगिकी पर विद्वतापूर्ण आलेख; श्री रतन शारदा का भारतीय संस्कृति और आज की समस्या के निदान पर विचारोत्तेजक आलेख; सर्वश्री अमीष त्रिपाठी, शेफाली वैद्य, एच.सी. पारीख, संदीप सिंह तथा राजन खन्ना एवं कमला देवी चट्टोपाध्याय के जीवन के विविध पहलुओं पर आलेख सुधी पाठकों को भारतीय संस्कृति के विविध पक्षों से अवगत कराएँगे। डॉ. गौरी माहुलीकर तथा श्री नीरज चावला के आलेख आपको पर्यावरण, प्रकृति तथा पशु-पक्षियों के मनोरम जगत् से परिचित कराएँगे और डॉ. वरुण सूथरा का आलेख एक ऐसे व्यक्ति से परिचित कराएगा, जो भारतीय संस्कृति का जीवंत प्रतीक है। कुल मिलाकर ‘अप्रतिम भारत’ ग्रंथ आप सुधी पाठकों को भारतीय जीवन मूल्यों के अनछुए पहलुओं की गंगा में अवगाहन कराएगा, जिसमें सराबोर होकर आप स्वयं को गौरवान्वित अनुभव करेंगे।SKU: n/a -
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Rajasthani Granthagar, इतिहास, ऐतिहासिक नगर, सभ्यता और संस्कृति
Architecture of Rajasthan
This book is about the historic city of Jaipur, the pink city of India. It is a unique city designed and established by Sawai Jai Singh II in 1727 A.D. The grandeur blueprint of this walled city has largely remained unchanged until now, even after 293 years. Despite various ups and downs, the city continued to flourish as a trade and religious center till mid 20th century.
Jai-Nagar, stamped as the World Heritage City by UNSECO, was fabricated in a blooming and charming architectural style, which is unique in many senses. It is a testimony of the intellect of Sawai Jai Singh and his successors. It is their inherent passion for art and architecture that unfolds into the magnificent buildings of this walled city.
The book will explore the palaces, Havelis, temples, gardens, kharkhanas, bawaris, streets, mohallas, etc. of the walled city, along with the forts in its vicinity. It is an attempt to bring forward the Rajput architectural features, and also highlight the impact of Mughal architecture. In fact, in Jaipur, the regional art and architectural traditions of Rajputs perfectly blended with the Mughal architectural traditions and emerged as the Dhoondhari style of architecture.SKU: n/a -
Chaukhamba Prakashan, Hindi Books, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Artha Samgraha
Written by Sri Laugakshi Bhaskar. With ‘Mimansa Samgrah Kaumudi’ Sanskrit Commentary by Sri Rameshwar Yogi and Hindi Commentary by Dr. Kameshwar Nath mishra :
लौगाक्षिभास्करकृत l रामेश्वरयोगिकृत ‘मीमांसासंग्रहकौमुदी’ संस्कृत तथा डॉ. कामेश्वरनाथमिश्रकृत ‘प्रकाशिका’ हिन्दी व्याख्या सहित
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