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The Life and Times of Chandrashekhar Azad

The Life and Times of Chandrashekhar Azad
Chandrashekhar Azad’s short and chequered life of a revolutionary is remembered in the annals of the history of India’s freedom struggle not merely for his indomitability in the face of odds, but for the human values he cherished. In today’s world, with the edifice of every conceivable value crumbling all around us, Azad’s life offers a paradigm for the redemption of a generation resigned to shallow ideals. Adversity came a dime a dozen to this village youth born to poor parents rich in morality and humaneness. It’s the roots that determine the actions of a person and actions, his destiny. At a time when we seem to be taking our freedom for granted, Azad’s biography is a reminder of the blood and toil that went into securing it. The road to preservation of freedom must be hemmed with respect for what we have, for being fortunate to be able to breathe in free air. The crucial caveat embedded in Azad’s biography is that we face a far greater threat from the enemies within than from enemies without.
Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।
Amar Shaheed Bhagat Singh
“प्रिय कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दु:ख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बड़ा दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का खयाल रखना। हौसला रखना। और क्या कहूँ… ‘उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतेहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें? सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहले महफिल! चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, खयालों की बिजली यह मुश्त-ए-खाक हूँ, रहे, रहे न रहे।’ अच्छा, रुखसत। ‘खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।’ हौसले से रहना।” —भगत सिंह युवावस्था में ही ‘रष्ट्र सर्वोपरि’ का मंत्र जपकर जिसने भारत की स्वतंत्राता के लिए फाँसी के फंदे को चूम लिया और अपनी शहादत से युवाओं के लहू में देशभक्ति का उबाल पैदा करके मिशन-ए-आजादी का महामंत्र फूँका, ऐसे महान् क्रांतिकारी एवं राष्ट्र-चिंतक अमर शहीद भगतसिंह की प्रेरणादायक जीवनी|
Bhagat Singh Jail Diary
माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।
Bhagat Singh Jail Diary
Great son of India, Shaheed Bhagat Singh was executed by the Britishers on V 23rd March, 1931. He dedicated his life to free motherland frOm the cruel clutches of the British.
His Jail Diary was handed over, along with other belongings to his father, Sardar Kishan Singh after his execution. After Sardar Kishan Singh’s death, the notebook, along with other papers of Bhagat Singh, was passed on to his another son, Shri Kulbir Singh. After his death, it has passed to his son, Shri Babar Singh. It was the dream of Shri Babar Singh that the Indian masses get to know through this historical diary what were the actual thoughts of Shaheed Bhagat Singh. Also general people can also see the original writings of Bhagat Singh because he is the hero of every caste, religion, poor, rich, farmers, labourers and everyone who loves Bharat.
Bhagat Singh’s deep thinking and vision, love for mankind can be seen by his these words, “Our political parties consist of men who have but one idea, i.e. to fight against the alien rulers. That idea is quite laudable, but cannot be termed a revolutionary idea. We must make it clear that revolution does not merely mean an upheaval or a sanguinary. strife. Revolution necessarily implies the programme of systematic reconstruction of society on new and better adapted basis, after complete destruction of the existing state of affairs (i.e. regime).”
Publication of this Jail Diary is a befitting tribute to the hero of India’s freedom struggle since it will infuse feeling of nationalism, patriotism and dedication among the readers.
About the Author
Yadvinder Singh Sindhu (Grandson ofShaheed Bhagat Singh) President, Shaheed Bhagat Singh Brigade and Vice Chairman, All India Shaheed Bhagat Singh Memorial Trust.
Gandhi Banam Bhagat : Ek Sant, Ek Sainik
‘गांधी बनाम भगत: एक संत, एक सैनिक’ उस ऊहापोह के समाधान की ओर एक विनम्र लघु प्रयास है, जो महात्मा गांधी और शहीद भगतसिंह के व्यक्तित्वों की तुलना से उत्पन्न होता है। दोनों भारतीय स्वाधीनता संग्राम के चमकते सितारे और माँ भारती के अमर सपूत हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया था, पर प्रकारांतर में इन दोनों विभूतियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। यह पुस्तक तटस्थ भाव से इन दोनों के अतुलनीय योगदान से परिचित कराती है कि कैसे एक ने सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर और दूसरे ने संघर्ष करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। महात्मा गांधी और सरदार भगतसिंह के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर विहंगम दृष्टि डालती एक पठनीय पुस्तक।.
1000 Bhagat Singh Prashnottari
भगत सिंह संधु का जन्म 28 सितंबर, 1907 को हुआ था। अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की थी। काकोरी कांड में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ सहित 4 क्रांतिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पंडित चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकनेवाले नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जे.पी. सांडर्स को मारा था। 8 अप्रैल, 1929 को अंगे्रज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। 23 मार्च, 1931 को शाम के करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। जेल में भगत सिंह करीब 2 साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उनके उस दौरान लिखे गए लेख व सगे-संबंधियों को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगत सिंह के त्याग-साहस-वीरता-देशप्रेम से परिपूर्ण संक्षिप्त, किंतु अविस्मरणीय जीवन प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत है।.
MAIN PREMCHAND BOL RAHA HOON
उपन्यास सम्राट् मुंशी प्रेमचंद ने गरीब मजदूरों व किसानों पर हो रहे अत्याचारों और उनके शोषण को बड़ी निकटता से देखा था। यही कारण है कि उन्होंने समाज से जुड़ी इस तरह की घटनाओं का अपनी रचनाओं में यथार्थ रूप से स्पष्ट वर्णन किया है। भारत उस समय परतंत्रता की बेडि़यों में जकड़ा हुआ था। अंग्रेज सरकार भारतीय जनता पर तरह-तरह के अत्याचार कर रही थी, जिससे जनता बुरी तरह त्रस्त थी। लोगों में राष्ट्र-प्रेम की भावना जाग्रत् करने के लिए प्रेमचंद ने अनेक लेख, कहानियाँ और उपन्यास लिखे। घोर निराशा में डूबी और अवसादग्रस्त जनता को झकझोरने के लिए उन्होंने सामाजिक कुप्रथाओं, जैसे— अनमेल विवाह, दहेज-प्रथा और बाल-विवाह पर कड़े प्रहार किए। इस पुस्तक में देश, समाज, धर्म, मानवीय अनुभूतियों और साहित्य की विभिन्न विधाओं पर प्रेमचंदजी के सुस्पष्ट विचार-पुष्प संचित हैं। प्रेमचंद की विभिन्न रचनाओं, लेखों एवं भाषणों में अभिव्यक्त उनके विचारों का प्रेरणाप्रद संकलन है ‘मैं प्रेमचंद बोल रहा हूँ’।.
Selected Stories of Premchand
Premchand, the undisputed master short story writer has written many short stories and novels. To introduce the master craftsman to the English reader these short stories have been selected for this volume. Each story is a classic in itself. A Pair of two Oxen, The Chess Players, Secret Treasure, Jamai Babu, Game of Tip Cat, The Spell, Idgah and The Tall Talker are all nonpareil of the great writer. The stories have survived the long spell of time and are still the most cherished stories of the reader. Quite a few stories have been selected by various film producers for successful films like The Chess Players as Shatranj Ke Khilari. The stories speak volumes about the economic, social and political conditions of the era.
While presenting the English version no compromise has been made with the quality and original flavour of the stories. So the esteemed reader will feel the same magnetic pull in each of the selected stories as in the original by the writer.
Shivaji Va Suraj

Shivaji Va Suraj
हमारी आज की परिस्थिति में हम सबको आवश्यक प्रतीत होनेवाला नया निर्माण शिवाजी महाराज द्वारा जिर्पित तंत्र नेतृत्व व समाज की उन्हीं शश्वत आधारभूत विशेषताओं को ध्यान में रखकर करना पड़ेगा। इस दृष्टि से अध्ययन व चिंतन को गति देनेवाला यह ग्रंथ है। शिवाजी ने सभी वर्गों को राष्ट्रीय ता की भावना से ओतप्रोत किया और एक ऐसी व्यवस्था का निर्माण किया जिसमें सभी विभागों का सृजन एवं संचालन कुशलता से हो। पुर्तगाली। वाइसराय काल द सेंट ह्विïसेंट ने महाराज की तुलना सिकंदर और सीजर से की। दुर्भाग्य से कुछ भारतीय इतिहासकारों ने शिवाजी को समुचित सम्मान नहीं दिया। प्रकाश सिंह भूतपूर्व महानिदेशक सीमा सुरक्षा बल एवं महानिदेशक उत्तर प्रदेश पुलिस/असम पुलिस While many of us are familar with shivaji’s military feats, his administrative acumen and wisdom were a revelation. The deep thought behind his prescriptions has immense relevance for today’s admisintrstors, and these chapters would immensely benefit those who have chosen a career in public service.
With regards,
Vijay Singh
Former Defense Secretary
Government of India भारत केवल सौदागरों के खेल का मैदान बन गया है, यह कटु है, पर सत्य है। शिवाजी महाराज की राजनीति और राज्यनीति मानों अमृत और संजीवनी दोनों ही हैं। छत्रपति शिवाजी महाराज की शासन व्यवस्था एक सप्रयोग सिद्ध किया हुआ महाप्रकल्प ही है। श्री अनिल दबे ने इस पुस्तक में हमें उसी से परिचित करवाया है। भारत की संसद और प्रत्येक विधानसभा के सदस्य को इस पुस्तक का अध्ययन करना चाहिए।
बाबा साहेब पुरंदरे, पुणे
* राजा को (नेतृत्वकर्ता ने) स्वयं के खाने-पीने का समय निश्चित करना चाहिए। सामान्यत: उसे नहीं बतलाना चाहिए। राजा को नशीले पदार्थों का सेवन नहीं करना चाहिए। अपने आस-पास कार्यरत व्यक्तियों को भी इन पदार्थों का सेवन नहीं करने देना चाहिए। राजा के पास जब शस्त्र न हो तो उसे लंबे यमस तक निरंतर धरती को नहीं देखते रहना चाहिए।
* कार्य के प्रारंभ में शपथ लेते समय उसका (नायक का) स्वकोष व राज कोष कितना था? और जब वह निवृत होकर गया तब दोनों कोष की क्या स्थिती थी? इनका अंतर ही उसका वित्तिय चरित्र है।
* शिवाजी—”कान्होजी, आपको इसे मृत्युदंड न देने का वचन दिया था सो उसका पालन किया लेकिन कोई भी सजा (खंडोजी खेपडा को) न दी जाती तो स्वराज में लोगों को क्या संदेश जाता कि देशद्रोह और परिचय में परिचय बड़ा है! क्या यह स्वराज के लिए उचित होता?’ ’
* प्रत्येक नायक का यह प्रथम कर्तव्य है कि वह गद्दार को सबसे पहले अपनी व्यवस्था से दूर करे, उसे सजा दिलवाए और गद्दारी की प्रवृति को पनपने से कठोरता पूर्वक रोके।
Shivaji Maharaj The Greatest

Shivaji Maharaj The Greatest
छत्रपति शिवाजी महाराज अप्रतिम थे। उनका पराक्रम, कूटनीति, दूरदृष्टि, साहस व प्रजा के प्रति स्नेहभाव अद्वितीय है। सैन्य-प्रबंधन, रक्षा-नीति, अर्थशास्त्र, विदेश-नीति, वित्त, प्रबंधन— सभी क्षेत्रों में उनकी अपूर्व दूरदृष्टि थी, जिस कारण वे अपने समकालीन शासकों से सदैव आगे रहे। राष्ट्रप्रेम से अनुप्राणित उनका जीवन सबके लिए प्रेरणा का स्रोत है और अनुकरणीय भी। छत्रपति शिवाजी महाराज ने ‘हिंदवी स्वराज’ की अवधारणा दी; अपनी अतुलनीय निर्णय-क्षमता और सूझबूझ व अविजित पराक्रम के बल पर मुगल आक्रांताओं के घमंड को चूर-चूर कर दिया; अपनी लोकोपयोगी नीतियों से जनकल्याण किया। शिवाजी महाराज की तुलना सिकंदर, सीजर, हन्नीबल, आटीला आदि शासकों से की जाती है। यह पुस्तक उस अपराजेय योद्धा, कुशल संगठक, नीति-निर्धारक व योजनाकार की गौरवगाथा है, जो उनके गुणों को ग्राह्य करने के लिए प्रेरित करेगी।
Shivaji Ke Management Sootra

Shivaji Ke Management Sootra
आज के प्रतिस्पर्धी युग में सफल व्यक्ति कहलाने के लिए यदि कोई उद्योगपति नहीं बन सकता; तो उसे या तो नेतृत्वकर्ता बनना पडे़गा या फिर प्रशासक या प्रबंधक। ऐसे में यदि भारत को अपनी पूरी संभावनाओं के साथ इस विश्वव्यापी प्रतिस्पर्धा में सफल होना है; तो उसे अपने भावी नेतृत्वकर्ताओं अर्थात् युवाओं के समक्ष स्वदेशी प्रेरणा-पुरुष को ही सामने रखना पडे़गा। इस दृष्टि से राष्ट्र-निर्माण के लिए भारतीय इतिहास में छत्रपति शिवाजी महाराज जैसा सफल व आदर्श प्रेरणा-पुरुष के अतिरिक्त और कौन हो सकता है?
साधन को संसाधन (रिसोर्स) बनाने की योजना बनाने व उसे ठीक प्रकार से लागू करने की प्रक्रिया को ही प्रबंधन (मैनेजमेंट) या प्रबंधन कला या प्रबंधन कौशल कहा जाता है। अब यदि हम इसे शिवाजी महाराज के जीवन पर लागू करें तो प्रबंधन की परिभाषा इस प्रकार होगी—‘सही पारिश्रमिक देकर लोगों के माध्यम से काम करने की कला।’
जी हाँ; यदि शिवाजी महाराज प्रबंधन कला के विशेषज्ञ नहीं होते तो स्थानीय मालव जनजाति के लोगों से कैसे संगठित सेना का विकास कर पाते? और यदि उच्च कुशलता संपन्न यह सेना नहीं होती; तो फिर शिवाजी महाराज के लिए स्वराज का स्वप्न देख पाना और उसे साकार कर पाना कैसे संभव हो पाता? फिर वह; वर्षा के पानी के बहाव को रोकने; हवा से बिजली पैदा कर पाने; समुद्री लहरों से ऊर्जा प्राप्त करने और आग; धुआँ व ध्वनि का संचार का माध्यम की तरह उपयोग कर पाने में कैसे सक्षम हो पाते?
छत्रपति शिवाजी महाराज ने अपने उत्तम प्रबंधकीय कौशल से हिंद स्वराज का सफल संयोजन किया। उनके बताए प्रबंधन सूत्र आज भी उतने ही प्रासंगिक और प्रभावी है।
Ek Kafir Mera Padosi

Ek Kafir Mera Padosi
कश्मीर आज इस धरती पर सबसे ज्यादा कट्टरपंथी क्षेत्र है। मगर धार्मिक अत्याचारों और हिंसा के ज्ञात लघु इतिहास से परे भी एक इतिहास है जहाँ पर इसके मूल निवासियों ने लगातार धार्मिक अत्याचारों का विरोध किया और अपने धर्म को बनाए रखने के लिए बार बार संघर्ष किया।
इस कहानी को एक ऐसे मनोवैज्ञानिक द्वारा संवेदना के तंतुओं के साथ बुना गया है जिन्होनें कश्मीर के दर्द को अपने काम के हिस्से के रूप में महसूस किया है। यह एक ऐसी प्रेरक कहानी है जो तीन युवाओं के इर्दगिर्द घूमती है, जो हैं आदित्य, एक हिन्दू कश्मीरी पुजारी, जो अपने लोगों के लिए न्याय खोज रहा है, अनवर जो उसका पड़ोसी और एक इमाम का बेटा है, जो एक इस्लामिक कश्मीर बनाने के लिए हर कदम उठाने के लिए तैयार है और जेबा जो अपने प्यार एवं मजहब के बीच फंसी है।
बगल में काफिर हर उस व्यक्ति के लिए शक्तिशाली कहानी है जो एक गहरे अन्धकार के बाद अपनी एक पहचान की तलाश में और पहली बार कोई किताब हिंदुत्व के बहुलतावाद एवं इस्लाम के एकेश्वरवाद के बीच के संघर्ष को इतनी गहराई बताती है तथा यह पहली ऐसी किताब है जो मानवीय भाव की क्षमा एवं पश्चाताप को बताती है।

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The Life and Times of Chandrashekhar Azad
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)The Life and Times of Chandrashekhar Azad
Chandrashekhar Azad’s short and chequered life of a revolutionary is remembered in the annals of the history of India’s freedom struggle not merely for his indomitability in the face of odds, but for the human values he cherished. In today’s world, with the edifice of every conceivable value crumbling all around us, Azad’s life offers a paradigm for the redemption of a generation resigned to shallow ideals. Adversity came a dime a dozen to this village youth born to poor parents rich in morality and humaneness. It’s the roots that determine the actions of a person and actions, his destiny. At a time when we seem to be taking our freedom for granted, Azad’s biography is a reminder of the blood and toil that went into securing it. The road to preservation of freedom must be hemmed with respect for what we have, for being fortunate to be able to breathe in free air. The crucial caveat embedded in Azad’s biography is that we face a far greater threat from the enemies within than from enemies without.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।SKU: n/a -
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Amar Shaheed Bhagat Singh
“प्रिय कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दु:ख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बड़ा दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का खयाल रखना। हौसला रखना। और क्या कहूँ… ‘उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतेहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें? सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहले महफिल! चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, खयालों की बिजली यह मुश्त-ए-खाक हूँ, रहे, रहे न रहे।’ अच्छा, रुखसत। ‘खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।’ हौसले से रहना।” —भगत सिंह युवावस्था में ही ‘रष्ट्र सर्वोपरि’ का मंत्र जपकर जिसने भारत की स्वतंत्राता के लिए फाँसी के फंदे को चूम लिया और अपनी शहादत से युवाओं के लहू में देशभक्ति का उबाल पैदा करके मिशन-ए-आजादी का महामंत्र फूँका, ऐसे महान् क्रांतिकारी एवं राष्ट्र-चिंतक अमर शहीद भगतसिंह की प्रेरणादायक जीवनी|
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Bhagat Singh Jail Diary
माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।SKU: n/a -
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Bhagat Singh Jail Diary
Great son of India, Shaheed Bhagat Singh was executed by the Britishers on V 23rd March, 1931. He dedicated his life to free motherland frOm the cruel clutches of the British.
His Jail Diary was handed over, along with other belongings to his father, Sardar Kishan Singh after his execution. After Sardar Kishan Singh’s death, the notebook, along with other papers of Bhagat Singh, was passed on to his another son, Shri Kulbir Singh. After his death, it has passed to his son, Shri Babar Singh. It was the dream of Shri Babar Singh that the Indian masses get to know through this historical diary what were the actual thoughts of Shaheed Bhagat Singh. Also general people can also see the original writings of Bhagat Singh because he is the hero of every caste, religion, poor, rich, farmers, labourers and everyone who loves Bharat.
Bhagat Singh’s deep thinking and vision, love for mankind can be seen by his these words, “Our political parties consist of men who have but one idea, i.e. to fight against the alien rulers. That idea is quite laudable, but cannot be termed a revolutionary idea. We must make it clear that revolution does not merely mean an upheaval or a sanguinary. strife. Revolution necessarily implies the programme of systematic reconstruction of society on new and better adapted basis, after complete destruction of the existing state of affairs (i.e. regime).”
Publication of this Jail Diary is a befitting tribute to the hero of India’s freedom struggle since it will infuse feeling of nationalism, patriotism and dedication among the readers.
About the Author
Yadvinder Singh Sindhu (Grandson ofShaheed Bhagat Singh) President, Shaheed Bhagat Singh Brigade and Vice Chairman, All India Shaheed Bhagat Singh Memorial Trust.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Gandhi Banam Bhagat : Ek Sant, Ek Sainik
‘गांधी बनाम भगत: एक संत, एक सैनिक’ उस ऊहापोह के समाधान की ओर एक विनम्र लघु प्रयास है, जो महात्मा गांधी और शहीद भगतसिंह के व्यक्तित्वों की तुलना से उत्पन्न होता है। दोनों भारतीय स्वाधीनता संग्राम के चमकते सितारे और माँ भारती के अमर सपूत हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया था, पर प्रकारांतर में इन दोनों विभूतियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। यह पुस्तक तटस्थ भाव से इन दोनों के अतुलनीय योगदान से परिचित कराती है कि कैसे एक ने सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर और दूसरे ने संघर्ष करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। महात्मा गांधी और सरदार भगतसिंह के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर विहंगम दृष्टि डालती एक पठनीय पुस्तक।.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)
The Life and Times of Chandrashekhar Azad
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)The Life and Times of Chandrashekhar Azad
Chandrashekhar Azad’s short and chequered life of a revolutionary is remembered in the annals of the history of India’s freedom struggle not merely for his indomitability in the face of odds, but for the human values he cherished. In today’s world, with the edifice of every conceivable value crumbling all around us, Azad’s life offers a paradigm for the redemption of a generation resigned to shallow ideals. Adversity came a dime a dozen to this village youth born to poor parents rich in morality and humaneness. It’s the roots that determine the actions of a person and actions, his destiny. At a time when we seem to be taking our freedom for granted, Azad’s biography is a reminder of the blood and toil that went into securing it. The road to preservation of freedom must be hemmed with respect for what we have, for being fortunate to be able to breathe in free air. The crucial caveat embedded in Azad’s biography is that we face a far greater threat from the enemies within than from enemies without.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Amar Shaheed Bhagat Singh
“प्रिय कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दु:ख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बड़ा दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का खयाल रखना। हौसला रखना। और क्या कहूँ… ‘उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतेहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें? सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहले महफिल! चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, खयालों की बिजली यह मुश्त-ए-खाक हूँ, रहे, रहे न रहे।’ अच्छा, रुखसत। ‘खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।’ हौसले से रहना।” —भगत सिंह युवावस्था में ही ‘रष्ट्र सर्वोपरि’ का मंत्र जपकर जिसने भारत की स्वतंत्राता के लिए फाँसी के फंदे को चूम लिया और अपनी शहादत से युवाओं के लहू में देशभक्ति का उबाल पैदा करके मिशन-ए-आजादी का महामंत्र फूँका, ऐसे महान् क्रांतिकारी एवं राष्ट्र-चिंतक अमर शहीद भगतसिंह की प्रेरणादायक जीवनी|
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Bhagat Singh Jail Diary
माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।SKU: n/a
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इतिहास और संस्कृति, राजनीति, पत्रकारिता और समाजशास्त्र
Kahani Communisto Ki – Part 1
The people who were trained by Communist International(Comintern) to propel the communist movement were working on it, more or less, at the same time and intervals, and in different ways for the expansion of Communist ideology in India.
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Shri Guruji : Prerak Vichar (Hindi)
विश्व के सबसे बड़े स्वयंसेवी संगठन ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ के द्वितीय सरसंघचालक श्री माधवराव सदाशिवराव गोलवलकर उपाख्य ‘श्रीगुरुजी’ आध्यात्मिक विभूति थे। सन् 1940 से 1973 तक करीब 33 वर्ष संघ प्रमुख होने के नाते उन्होंने न केवल संघ को वैचारिक आधार प्रदान किया, उसके संविधान का निर्माण कराया, उसका देश भर में विस्तार किया, पूरे देश में संघ की शाखाओं को फैलाया।
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Statement in solidarity with Mr. Prashant Bhushan
Of late scores of intellectuals, common man, reporters, so-called social activists, Retd. judges, Ex IASs have joined hands to support the removal of SC proceedings (contempt of court) against Advocate Prashant Bhushan. Download this FREE PDF which contains the statement in solidarity with Mr. Prashant Bhushan endorsing the withdrawal of contempt proceedings.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां, जीवनी/आत्मकथा/संस्मरण, प्रेरणादायी पुस्तकें (Motivational books)The Life and Times of Chandrashekhar Azad
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Bhagat Singh Ki Phansi Ka Sach
शहीद-ए-आजम भगत सिंह (1907-1931) एक ऐसे समय जी रहे थे, जब भारत का स्वतंत्रता संग्राम जोर पकड़ने लगा था और जब महात्मा गांधी का अहिंसात्मक, आंशिक स्वतंत्रता का शांत विरोध लोगों के धैर्य की परीक्षा ले रहा था। हथियार उठाने की भगत सिंह की अपील युवाओं को प्रेरित कर रही थी और उनके साथ ही हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन की सैन्य शाखा के कॉमरेड मिलकर सुखदेव और राजगुरु की ललकार तथा दिलेरी उनमें जोश भर रही थी। ‘इनकलाब जिंदाबाद!’ का जो नारा उन्होंने दिया था, वह स्वतंत्रता की लड़ाई का जयघोष बन गया।
लाहौर षड्यंत्र केस में भगत सिंह के शामिल होने को लेकर मुकदमे का ढोंग चला और जब तेईस वर्ष की उम्र में, अंग्रेजों ने भगत सिंह को फाँसी दे दी, तब भारतीयों ने उनकी शहादत को उनकी जवानी, उनकी वीरता, और निश्चित मृत्यु के सामने अदम्य साहस के लिए पूजना शुरू कर दिया। इसके कई वर्षों बाद, 1947 में स्वतंत्रता मिलने पर, जेल में उनके लिखे लेख सामने आए। आज, इन लेखों के कारण ही भगत सिंह ऐसे कई क्रांतिकारियों से अलग दिखते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भारत के लिए बलिदान कर दिया।
जानकारी से भरपूर और दिलचस्प यह पुस्तक भारत के महानतम स्वतंत्रता सेनानियों में से एक और अनूठी बौद्धिक ईमानदारी दिखानेवाले व्यक्ति का रोचक वर्णन है।SKU: n/a -
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Amar Shaheed Bhagat Singh
“प्रिय कुलतार, आज तुम्हारी आँखों में आँसू देखकर बहुत दु:ख हुआ। आज तुम्हारी बातों में बड़ा दर्द था। तुम्हारे आँसू मुझसे सहन नहीं होते। बरखुरदार, हिम्मत से शिक्षा प्राप्त करना और सेहत का खयाल रखना। हौसला रखना। और क्या कहूँ… ‘उसे यह फिक्र है हरदम, नया तर्जे जफा क्या है? हमें यह शौक देखें, सितम की इंतेहा क्या है? दहर से क्यों खफा रहें, चर्ख का क्यों गिला करें? सारा जहाँ अदू सही, आओ मुकाबला करें। कोई दम का मेहमान हूँ, ए अहले महफिल! चरागे सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ। मेरी हवाओं में रहेगी, खयालों की बिजली यह मुश्त-ए-खाक हूँ, रहे, रहे न रहे।’ अच्छा, रुखसत। ‘खुश रहो अहले वतन हम तो सफर करते हैं।’ हौसले से रहना।” —भगत सिंह युवावस्था में ही ‘रष्ट्र सर्वोपरि’ का मंत्र जपकर जिसने भारत की स्वतंत्राता के लिए फाँसी के फंदे को चूम लिया और अपनी शहादत से युवाओं के लहू में देशभक्ति का उबाल पैदा करके मिशन-ए-आजादी का महामंत्र फूँका, ऐसे महान् क्रांतिकारी एवं राष्ट्र-चिंतक अमर शहीद भगतसिंह की प्रेरणादायक जीवनी|
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Bhagat Singh Jail Diary
माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगतसिंह के बारे में हम जब भी पढ़ते हैं, तो एक प्रश्न हमेशा मन में उठता है कि जो कुछ भी उन्होंने किया, उसकी प्रेरणा, हिम्मत और ताकत उन्हें कहाँ से मिली? उनकी उम्र 24 वर्ष भी नहीं हुई थी और उन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया।
लाहौर (पंजाब) सेंट्रल जेल में आखिरी बार कैदी रहने के दौरान (1929-1931) भगतसिंह ने आजादी, इनसाफ, खुद्दारी और इज्जत के संबंध में महान् दार्शनिकों, विचारकों, लेखकों तथा नेताओं के विचारों को खूब पढ़ा व आत्मसात् किया। इसी के आधार पर उन्होंने जेल में जो टिप्पणियाँ लिखीं, यह जेल डायरी उन्हीं का संकलन है। भगतसिंह ने यह सब भारतीयों को यह बताने के लिए लिखा कि आजादी क्या है, मुक्ति क्या है और इन अनमोल चीजों को बेरहम तथा बेदर्द अंग्रेजों से कैसे छीना जा सकता है, जिन्होंने भारतवासियों को बदहाल और मजलूम बना दिया था।
भगतसिंह की फाँसी के बाद यह जेल डायरी भगतसिंह की अन्य वस्तुओं के साथ उनके पिता सरदार किशन सिंह को सौंपी गई थी। सरदार किशन सिंह की मृत्यु के बाद यह नोटबुक (भगतसिंह के अन्य दस्तावेजों के साथ) उनके (सरदार किशन सिंह) पुत्र श्री कुलबीर सिंह और उनकी मृत्यु के पश्चात् उनके पुत्र श्री बाबर सिंह के पास आ गई। श्री बाबर सिंह का सपना था कि भारत के लोग भी इस जेल डायरी के बारे में जानें। उन्हें पता चले कि भगतसिंह के वास्तविक विचार क्या थे। भारत के आम लोग भगतसिंह की मूल लिखावट को देख सकें। आखिर वे प्रत्येक जाति, धर्म के लोगों, गरीबों, अमीरों, किसानों, मजदूरों, सभी के हीरो हैं।
भगतसिंह जोशो-खरोश से लबरेज क्रांतिकारी थे और उनकी सोच तथा नजरिया एकदम साफ था। वे भविष्य की ओर देखते थे। वास्तव में भविष्य उनकी रग-रग में बसा था। उनके अपूर्व साहस, राष्ट्रभक्ति और पराक्रम की झलक मात्र है हर भारतीय के लिए पठनीय यह जेल डायरी।SKU: n/a -
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Bhagat Singh Jail Diary
Great son of India, Shaheed Bhagat Singh was executed by the Britishers on V 23rd March, 1931. He dedicated his life to free motherland frOm the cruel clutches of the British.
His Jail Diary was handed over, along with other belongings to his father, Sardar Kishan Singh after his execution. After Sardar Kishan Singh’s death, the notebook, along with other papers of Bhagat Singh, was passed on to his another son, Shri Kulbir Singh. After his death, it has passed to his son, Shri Babar Singh. It was the dream of Shri Babar Singh that the Indian masses get to know through this historical diary what were the actual thoughts of Shaheed Bhagat Singh. Also general people can also see the original writings of Bhagat Singh because he is the hero of every caste, religion, poor, rich, farmers, labourers and everyone who loves Bharat.
Bhagat Singh’s deep thinking and vision, love for mankind can be seen by his these words, “Our political parties consist of men who have but one idea, i.e. to fight against the alien rulers. That idea is quite laudable, but cannot be termed a revolutionary idea. We must make it clear that revolution does not merely mean an upheaval or a sanguinary. strife. Revolution necessarily implies the programme of systematic reconstruction of society on new and better adapted basis, after complete destruction of the existing state of affairs (i.e. regime).”
Publication of this Jail Diary is a befitting tribute to the hero of India’s freedom struggle since it will infuse feeling of nationalism, patriotism and dedication among the readers.
About the Author
Yadvinder Singh Sindhu (Grandson ofShaheed Bhagat Singh) President, Shaheed Bhagat Singh Brigade and Vice Chairman, All India Shaheed Bhagat Singh Memorial Trust.SKU: n/a -
Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, कहानियां
Gandhi Banam Bhagat : Ek Sant, Ek Sainik
‘गांधी बनाम भगत: एक संत, एक सैनिक’ उस ऊहापोह के समाधान की ओर एक विनम्र लघु प्रयास है, जो महात्मा गांधी और शहीद भगतसिंह के व्यक्तित्वों की तुलना से उत्पन्न होता है। दोनों भारतीय स्वाधीनता संग्राम के चमकते सितारे और माँ भारती के अमर सपूत हैं, जिन्होंने देश के लिए सर्वस्व समर्पित कर दिया था, पर प्रकारांतर में इन दोनों विभूतियों को एक-दूसरे के प्रतिद्वंद्वी के रूप में प्रस्तुत किया जाने लगा। यह पुस्तक तटस्थ भाव से इन दोनों के अतुलनीय योगदान से परिचित कराती है कि कैसे एक ने सत्याग्रह के रास्ते पर चलकर और दूसरे ने संघर्ष करके अंग्रेजों को भारत छोड़ने के लिए विवश कर दिया। महात्मा गांधी और सरदार भगतसिंह के जीवन और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर विहंगम दृष्टि डालती एक पठनीय पुस्तक।.
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Prabhat Prakashan, अन्य कथा साहित्य, ऐतिहासिक उपन्यास, कहानियां
1000 Bhagat Singh Prashnottari
भगत सिंह संधु का जन्म 28 सितंबर, 1907 को हुआ था। अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियाँवाला बाग हत्याकांड ने भगत सिंह की सोच पर गहरा प्रभाव डाला था। लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भगत सिंह ने भारत की आजादी के लिए ‘नौजवान भारत सभा’ की स्थापना की थी। काकोरी कांड में रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ सहित 4 क्रांतिकारियों को फाँसी व 16 अन्य को कारावास की सजाओं से भगत सिंह इतने अधिक उद्विग्न हुए कि पंडित चंद्रशेखर आजाद के साथ उनकी पार्टी हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन से जुड़ गए और उसे एक नया नाम दिया ‘हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन’। इस संगठन का उद्देश्य सेवा, त्याग और पीड़ा झेल सकनेवाले नवयुवक तैयार करना था। भगत सिंह ने राजगुरु के साथ मिलकर 17 दिसंबर, 1928 को लाहौर में सहायक पुलिस अधीक्षक रहे अंग्रेज अधिकारी जे.पी. सांडर्स को मारा था। 8 अप्रैल, 1929 को अंगे्रज सरकार को जगाने के लिए बम और पर्चे फेंके थे। 23 मार्च, 1931 को शाम के करीब 7 बजकर 33 मिनट पर भगत सिंह तथा उनके दो साथियों सुखदेव व राजगुरु को फाँसी दे दी गई। जेल में भगत सिंह करीब 2 साल रहे। इस दौरान वे लेख लिखकर अपने क्रांतिकारी विचार व्यक्त करते रहे। जेल में रहते हुए उनका अध्ययन बराबर जारी रहा। उनके उस दौरान लिखे गए लेख व सगे-संबंधियों को लिखे गए पत्र आज भी उनके विचारों के दर्पण हैं। माँ भारती के अमर सपूत शहीद भगत सिंह के त्याग-साहस-वीरता-देशप्रेम से परिपूर्ण संक्षिप्त, किंतु अविस्मरणीय जीवन प्रश्नोत्तर रूप में प्रस्तुत है।.
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